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________________ ११० आनन्द प्रवचन : भाग ६ घटनास्थल पर आ पहुंची। अब ब्राह्मण वत अपने द्वारा किया गये व्यवहार पर पश्चाताप होने लगा। पुलिस ने ब्राह्मणी के बयान लिये। उसने कहा- 'मैंने इन्हें कमाकर लाने को कहा। भोजन का सामान का देने के लिए बार-बार सावधान किया, जिस पर नाराज होकर मुझे पीट दिया। देख लो, मेरा हाल यह है।" पुलिसने ब्राह्मण का अपराध मानकर उसे गिरफ्तार कर लिया और सीधे वे कोतवाली थाने में ले गए। वहाँ ब्राह्मण सेकहा गया कि, “अपने बयान लिखाओ कितुमने अपनी पत्नी को इतना क्यों पीटा ?'' ब्राह्मण ने लावश सोचा-अगर इनजि सामने बयान दिया तो कुछ आश्वासन मिलना तो दूर रहा, उलटे फजीहत होगी। अतः मुझे तो राजा के सामने ही बयान देना चाहिए। अतः ब्राह्मण ने उनसे कहा- मैं अपने बयान राजा जी के सामने ही दूंगा, यहाँ नहीं।" कोतवाल तथा अन्य पुलिस विभाग के कर्मचारियों ने ब्राह्मण को बहुत कुछ धमकाया, समझाया किन्तु वह टस से मस न हुआ। ब्राह्मण की जिद्द देखकर थाने के लोगों ने सोचा-जाने दो, यह राजा के सामने ही अपने बयान दे देगा। अगर गलत बयान दिया तो हम भी देख लेंगे। दूसरे ही दिन सिपाहियों ने दरिद्र ब्राह्मप को राजा भोज के समक्ष प्रस्तुत किया। राजा भोज ने पूछा- "इसे किस अपराध में Pकड़ा गया है ?" सिपाही बोला--- "हुजुर ! इस ब्राह्मण ने बिना ही अपराध के अपनी पत्नी को बहुत मारा-पीटा है, उसके सिर से रक्तकी धाण बह चली। अपनी पत्नी के प्रति इसका व्यवहार अच्छा नहीं है।" राजा भोज ने दरिद्र विप्र से पूछा---''क्यों विप्रवर ! यह कह रहा है, वह ठीक दरिद्रता ने लज्जा के मारे सिर नीचा करके कहा-"और तो सब टीक है। मगर मुझे ब्राह्मण कहा जा रहा है, यह गलत है । मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूँ और जो भी दण्ड देंगे वह भी मंजूर करूँगा।" राजा ने पूछा--"क्या तुम ब्राह्मण नहीं हो ?" वह बोला---''देव ! ब्राह्मण तो था, पर अपनी पत्नी को क्रोधवश पीटते समता मुझमें चाण्डालत्व आ गया था।" राजा भोज ने सोचा-यह ब्राह्मण चैनेलो विद्वान है, कुलीन है, इसकी आँखों में शर्म है, मन में पश्चात्ताप भी है, अपनी सारी स्थिति सत्य-सत्य बतला दी है। इसलिए मूल अपराध इसका नहीं और न ही इसकी गली और माता का है। यह कहता है कि 'न तो पत्नी मुझसे सन्तुष्ट हैं. न माता और क दोनों परस्पर एक दूसरे से तुष्ट हैं और न ही में उन दोनों से सन्तुष्ट हूँ, बताइए राजन किसका दोष है" मेरी अन्तरात्मा कहती १. अम्बा न तुष्यति मया, साऽपि नाम्बया न मया । अहमपि न तया, न तया, वद राजन का दोषोऽयम् ?
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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