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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित,
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निद्रव्यं पुरुषं सदैव विकलं, सर्वत्र मन्दादरम्, तातभात सुहजनादिरपि तं दृश्वा न सम्भाषते। भार्या रूपवती कृरंगनयना स्नेहेन नालिंगते,
तस्माद् द्रव्यमुपार्जयाशु सुमतेः ! द्रव्येण सर्वेवशाः। निर्धन पुरुष सदैव व्याकुल बेचैन रहता है. उसका आदर सर्वत्र कम हो जाता है, उसके पिता, भाई, मित्रजन आदि भी उसे देखकर उससे बात नहीं करते। यहाँ तक उसकी मृगनैनी रूपवती पत्नी भी उससे स्नेहपूर्वक व्यवहार नहीं करती। इसलिए है बुद्धिमान ! तुम्हें शीघ्र ही द्रव्य का उपार्जन करना चाहिए। द्रव्य के कारण सभी वश में हो जाते हैं।
सचमुच दरिद्रता से बढ़कर कष्टदायक और सदा बचने योग्य कोई चीज नहीं है। दरिद्रता से लजा, संकोच, मान मर्यादा, शील, शान्ति, दया आदि सभी गुणों का नाश हो जाता है।
एक दरिद्रता की प्रतिमूर्ति ब्राह्मण पण्डिा था। वह इतना स्वाभिमानी था कि स्वतः जो कुछ मिल जाता, उसी से सन्तुष्ट हो जाता, किसी से कुछ मांगने में उसे लज्जा का अनुभव होता था। एक बार ऐसी स्थिति हो गई कि ब्राह्मण किसी कारणवश तीन चार दिन तक कहीं कमाने नहीं जा सका। घर में आटा-दाल समाप्त होगये थे। ब्राह्मणी प्रतिदिन अपने पति से कहती-"अजी ! कहीं बाहर जाकर कुछ काम ढूंढो, जिससे घर का काम चले। घर में आटा-दाल समाप्त निने जा रहे हैं।" पर ब्राह्मण नहीं जा सका। तीन दिन के बाद उसने ब्राह्मणी से माँग की—"लाओ कुछ भोजन बना है तो खिला दो। आज मैं काम पर जाने की सोच रहा हूँ।" पर घर में कुछ बचा तो था नहीं, वह कैसे बनाती ? अतः उसने कहा-“घर में तो आटा-दाल का जयगोपाल है। कुछ होता तो बनाती। एक तुम हो कि इतना कहने पर भी कुछ कमाने नहीं जाते। बताओ, मैं कहाँ से रोटी बनाकर दूँ।" ।
पली की जली-कटी सुनकर ब्राह्मण को ताव आ गया। उसने गुस्से में आकर कहा-"ज्यादा बकबक मत कर | मैं काम पर नहीं जा सका तो तू भी तो थी। कहीं से आटे दाल का जुगाड़ करती, पर तुझमें कुछ अक्ल हो तो। अब तक दसरों पर धीस जमाना ही जानती है।' इस पर ब्राह्मणी को भी तैश आ गया। वह भी तमककर बोली-"तुममें कमाने की ताकत नहीं थी तो विवाह किये बिना कौन-सा काम अटका था। दुनिया में ऐसे भी लोग है, जो विवाह करके आते हैं, पर उसका निर्वाह नहीं कर सकते। तुम्हारी माँ ने क्यों विवाह कर दिया तुम्हारा ? उसने कमाना तो सिखाया नहीं, आलसी बनकर पड़े रहना सिखाया।" यह सुनते ही ब्राह्मण आग-बबूला हो गया। उसने जूतों से ब्राह्मणी को इतना पीटा कि उनके मस्तक से रक्त की धारा बहचली। ब्राह्मणी भी जोर-जोर से चिल्ला रही थी-बाँडो-दौड़ो बचाओ ऐसे निर्दय से। और ब्राह्मण भी बड़बड़ा रहा था। लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। कुछ देर में पुलिस भी