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ऐसे पुत्र से क्या...?
[७०] कुछ किसी न किसी का उठा ही लाता। बिना मूल्य घर में चीजें आना माँ के मन के लिये और भी खुशी का कारण बना।
धीरे-धीरे बालक युवा हुआ और इतनी उम्र तक तो पक्का चोर भी बन गया। किन्तु पाप का घड़ा फूटे बिना नहीं रहता इसी नियम के अनुसार एक बार चोरी के साथ-साथ किसी की हत्या भी कर देने के जुर्म में उसे फाँसी की सजा हो गई। जिस दिन फाँसी दी जाने वाली थी, अधिकारियों ने उससे उसकी अन्तिम इच्छा प्रकट करने के लिये कहा
युवक ने कहा - "अपनी माँ से झिनना चाहता हूँ।" । ____ मॉ को कैदी के समीप बुलाया गया। पर उस कैदी और फाँसी पाने के लिये तैयार युवक ने क्या किया? जगाते हैं आप? हाथ तो उसके हथकड़ियों में जकड़े ही थे अत: माँ के मुँह पर थूक दिया।
आसपास खड़े हुए व्यक्ति चकित हुए और इसका कारण पूछने लगे। युवक ने उत्तर दिया - "मुझे इस स्थिति पर पहुँचाने वाली मेरी यह माँ ही है। अगर बचपन में चोरी करना प्रारम्भ करने पर पह मुझे प्रोत्साहन न देती और मना करती तो मैं आज फाँसी नहीं पाता।" कहकर युवत ने मुँह मोड़ लिया।
बंधुओ, बचपन के संस्कारों का कभी-कभी ऐसा भयंकर प्रभाव पड़ता है। इसलिये आवश्यक है कि बालकों में प्रारम्भ से ही उत्तम संस्कार डाले जायें। उनमें नीति और धर्म का बीजारोपण किया जाय। सरकारी स्कलों और कॉलेजों के भरोसे रहकर आप अपने बालकों को कभी आचारनिठि और धर्मनिष्ठ नहीं बना सकते। आजकल क्या होता है?
___ आजकल तो हम आये दिन सुनते हैं और अखबारों में पढ़ते भी हैं कि अमुक स्कूल में छात्रों ने अध्यापक को पीट दिया। अथवा अमुक कॉलेज के छात्र ने पिस्तौल से मार डालने की धमकी कर अपने नंबर बढ़वा लिये। ऐसी आधुनिक शिक्षा क्या छात्रों को महापुरुष बना सकती है? वहाँ से वे केवल अनुशासन-हीनता
का ही पाठ पढ़कर निकलते हैं और उसका उपयोग आपके घर में करते हैं। बताये, कितने पिता यहाँ पर ऐसे हैं जो अपने पुत्रों की शिक्षा से और उनके सद्व्यवहारों से संतुष्ट हैं? शिक्षा कैसी हो?
शिक्षा का कार्य है, बालक में जो सद्गुण गुप्तरूप से विद्यमान होते हैं उन्हें प्रत्यक्ष करना। चरित्र निर्माण करना, तथा उसे सन्मार्ग बताना। शरीर तथा आत्मा में अधिक से अधिक जितने सौन्दर्य और सम्पूर्णता का विकास हो सकता है उसे सम्पन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य जीवन की परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता प्राप्त करुा है। आज स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा