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________________ .[४३] आनन्द प्रवचन : भाग १ परीषह देने से भी नहीं चूकते। किन्तु सन्त में उन्हें मुँह की खानी पड़ती है। क्योकि मृत्यु को कौतुक समझने वाले दृढाती पुरुष प्राणों पर खेल कर भी अपने धर्म से नहीं डिगते। ऐसी महान आत्माएँ : मरकर भी अमर हो जाती हैं। युग युग तक उनका नाम जीवित रहता है। किसी कवि ने बड़े सुन्दर ढंग से यही बात समझाई है: यूँ तो जीने के लिये लोग जिया करते हैं, लाभ जीवन का फिर भी न लिया करते हैं मृत्यु से पहले भी मरते हैं हागारों लेकिन - जिन्दगी उनकी है जो मर के जिया करते हैं! गुरु गोविन्दसिंह के छोटे छोटे सुमार पुत्रों ने भी सची जिन्दगी के रहस्य को समझ लिया था। तथा क्रूर सम्राट चौरंगजेब के द्वारा नाना प्रकार के लोभों की तथा भयों की परवाह न करते हुए मुसलमान बनने से इन्कार कर दिया था। दोनों छोटे बालक दीवार में जीवित ही कम दिए गये किन्तु धर्म से रंव-मात्र भी विचलित न होते हुए वे संसार से सदा के लिए अपना नाम अमर कर गए। समाज के भावी कर्णधार आज हमारे यहाँ अध्यापक गण व बाल-विद्यार्थी आए हुए हैं। अपनी पाठ्य पुस्तकों में इन नन्हें बालकोंने धर्म पर प्राण न्यौछावर कर देने वाले गुरु गोविन्दसिंह की कहानी पढ़ी ही होगी। उनके समान है। इन्हें भी अपने धर्म पर, सत्य, अहिंसा आदि आत्म-गुणों पर अभी से दृढ आस्था रखने का प्रयत्न करना है। क्योंकि अच्छे संस्कार बाल्यावस्था से ही अगर बास्क के मन में जम जायें तो जीवन-पर्यंत बने रहते हैं। आज का बालक ही कल के समाज का कर्णधार बनता है, अत: प्रत्येक को अपने आप पर पूर्ण विश्वास रखते हा सतत यह भावना रखनी चाहिये आज का रजकण जरा सा, गुच्छ हूँ, बे-भान हूँ मैं। . देखना कुछ दिन, हिमाचल, विश्ववन्द्य महान हूँ मैं। नव्य युग सर्जन करूँगा, भूत-कण्ठ कृपाण हूँ मैं। क्रांति रण का अग्रयोध्दा, टिश्व का कल्याण हूँ मैं। बालकों, तुम्हारे भोले भाले हृदयों को देखकर मुझे अपार प्रसन्नता होती है। मैं चाहता हूँ कि तुम संसार विजयी बनो और अपने मानव-जीवन को पूर्णत: सार्थक बनाओ। आज मैं तुम्हें तुम्हारे गणित के अधार पर ही जीवन के विषय में बताता ने धर्म पर प्रा भी अपने धर्म बना है। क्योंकि जीवन और गणित तुम्हारे शिक्षक तुम्हें चार प्रकार से गणित सिखाते हैं। जोड, बाकी, गुणा, और भाग। इन चारोंके द्वारा ही तुम बड़े बड़े सवाल कर लेते हो। बड़ी-बड़ी मिलों, फैक्टरियों और कारखानों का हिसाब-किताफ भी इन्हीं के द्वारा कर लिया जाता है। जीवन का हिसाब-किताब भी चार प्रकार से किया जाता है।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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