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________________ • [४१] आनन्द प्रवचन : भाग १ इन्द्र की बात पर विश्वास नहीं होता। आप भी सभा-सोसाइटी में बैठी हैं। उनमें भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रस्ताव रखे जाते है। अधिकांशत: कोई भी प्रस्ताप सभी को मान्य होता। अगर निन्यानवे व्यक्ति उसके पक्ष में मत देंगे तब भी एकाध तो ऐसा मिल ही जायगा जो उसके विरोध में होगा। तो जिस प्रकार आपकी सभा-सोसाइटियों में कोई न कोई प्रस्ताव की खिलाफत करने वाला मिल जाता है, उसी प्रकार देवलोक में भी जो समदृष्टि नहीं होते, वे देवता गुणीजनों की प्रशंसा को साटन नहीं करते। सराहना किसकी? भले ही सराहना देवलोक में की चाय अथवा मृत्युलोक में, वह होती किसकी है यह विचारणीय बात है। इस विषय में संस्कृत साहित्य में एक श्लोक कहा गया है : नहि जन्मनि श्रेष्ठत्वं त्वं गुण उच्यते। केतकीवरपत्राणां लशपत्रस्य गौरवम्।। इस श्लोक में बताया गया है के किसी को भी जन्म से श्रेष्ठत्व प्राप्त नहीं होता। श्रेष्ठत्व उत्तम गुणों के कारण ' उपलब्ध होता है। कोई व्यक्ति उच्च जाति या उचकुल में जन्म ले लेने से ही श्रेष्ट कहलाने लग जाय यह संभव नहीं है। उच जाति का होने पर भी अगर वह साणों से रहित हो उसका आचरण निंदनीय हो तो वह श्रेष्ठत्व के पास भी नहीं फटके सकता। जन्म जहाँ है, वहाँ श्रेष्ठत्व नहीं है। श्रेष्ठत्व वहाँ है, जहाँ सदगुण हैं। जति का कोई महत्व नहीं है। महत्त्व केवल सदगुणोंका है। सआचरण का है। सदाचरण का चमत्कार गांधी जी जब विलायत में थे, पादरी ने सोचा कि यादि मैं गांधी को ईसामसीह का भक्त बना दूँ तो हिन्दुस्तान में करोड़ों आदमी अपने आप ही ईसाई बन जाएँगे। पादरी ने गांधीजी से संपर्क बढाया और एक दिन उनसे प्रस्ताव किया "आप प्रत्येक रविवार को मेरे घर भोजन किया कीजिये ताकि हम कुछ समय बैठ कर धर्म-चर्चा कर सकें।" गांधीजी ने पादरी के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। रविवार के दिन पादरी महोदय ल निरामिष भोजन की व्यवस्था करते हुए देखकर उनके बचों ने पूछा - "पिताजी! ऐसा क्यों कर रहे हैं?" पादरी ने उत्तर दिया - "मेरा मित्र गांधी हिंदुस्तानी है, वह मांस नहीं खाता इसलिये शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की जा रही है। "वे मांस क्यों नहीं खाते?" बच्चों ने सरलता से पूछा पादरी ने व्यंग से कहा "वह कहता है, जैसे हमारे प्राण हैं वैसे ही समरत पश-पक्षियों के भी प्राण हैं। हमें कोई मारे तो जैसा कष्ट हमें होता है वैसा ही
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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