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________________ [२२] तीन अँगुलियाँ किस ओर ? एक बार महात्मा गांधीजी के आश्रम में किसी सदस्य से दुराचार हो गया। एक व्यक्ति ने इसकी शिकायत करते हुए गुमनाम पत्र लिखकर गांधीजी के पास भेज दिया। प्रार्थना के इन स्वरों में • उसी दिन प्रार्थना के समय गांधी जी गम्भीरता पूर्वक बोले “प्रथम तो इस प्रकार गुमनाम पत्र लिखना ही गलत बात है, दूसरे यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी की ओर अँगुली उठाते समय की की तीन अंगुलियाँ स्वयं अपने दिल की तरफ होती हैं।" इसी वजह से महात्मा कबीर ने कहा है : 'जो देखन मैं चला, बुरा न दीखा कोय | बुरा जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय ॥ कहने का अभिप्राय यही है कि किसी की निंदा मत सुनो। दूसरों की निंदा सुनने पर धीरे-धीरे निंदा करना भी प्रारम्भ हो जाता है। और निंदा आपसी कलह, फूट तथा कभी-कभी भयानक झगड़ों वल कारण भी बन जाती है। इसीलिए सज्जन - महापुरुष अपने कान से निंदा श्रवण करने की बजाय धर्म-प्रवचन, शास्त्रीय कथाएँ, भक्ति रस से परिपूर्ण भजन तथा तत्त्वज्ञान की चर्चाएँ सुनना पसंद करते हैं। और इसी में अपने कानों की सार्थकता समझते हैं। संसार में आसक पुरुष तो भगवान से अगर प्रार्थना करते भी हैं तो धन सम्पत्ति, पुत्र, रोग निवारण तथा दो हाथ से चार हाथ बन जाने को माँग करते हैं। बड़े होशियार हैं आप लोग! चतुर्भुज ही बनना चाहते हैं, चतुष्कद्र नहीं। लेकिन सन्त-पुरूष यह सब नहीं चाहते। वे इन्द्रिय सुख को हेय मानते हैं तथा उन्हीं बातों की इच्छा करते हैं जिनसे आत्मा का कल्याण हो। अमीऋषि जी महाराज अपनी प्रार्थना में आगे कहते हैं - मेरी लाज राखो नाथ, मैं तो कर्म- रिपुटार मेरी अमीरिख कहे प्रभु तारन तिर अनाथ दीन, ह को संभारिये ! आप, दुःख रूप सागर से पार यों उतारिये ! हे नाथ! मेरी लाज रखो। आप अनन्त शक्ति के धारक और समर्थ हैं, आप स्वयं संसार सागर को पार कर चुके हैं तथा दुखी प्राणियों को पार पहुँचाने वाले हैं। मेरी बाँह पकड़कर मुझे भी इस दुःख रूप सागर से पार उतारिये तथा मेरे कर्म रूपी शत्रुओं का नाश कीजिये ! मनुष्य अनाथ और दीन क्यों है? केवल कर्मों के कारण कर्म बन्धनों से जकड़ा हुआ होने के कारण ही वह अशक्त और दीन है।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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