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________________ • [१९] आनन्द प्रवचन भाग १ किया जाय तो माफी कैसी ? अगर इस प्रकार गुनाह और अपराध माफ होते जायें तो फिर नरक किसके लिए है? माफी माँगो प्रार्थना करो! पर प्रार्थना करने के साथ-साथ गुनाह करना छोड़ो ! तभी कल्याण हो सकेगा। प्रार्थना के साथ-साथ विषय-विकारों को त्यागने का प्रयत्न करो, आत्मा के शत्रुधों को अपने पुरुषार्थ से नष्ट करो, तभी प्रार्थना सार्थक बन सकेगी। अभिमान के स्थान पर उपकार भावना प्रार्थना में आगे कहा गया है "तीय दूर अहंकार सचे चित्त उपकार ।' अर्थात् मेरे हृदय में अहंकार की भावना का लोप हो जाये और उसका स्थान परोपकार की भावना ले ले। उपकार करने से केवल दूसरे का ही भला नहीं होता, करने वाले का भी भला होता है। दूसरों पर उपकार करने वाला व्यक्ति न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में अपना भी उपकार करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। कविवर रहीम ने भी यही बात कही है - यों रहीम सुख होत है, उपकारी के अंग । बॉटन वारे के लगे, ज्यों मेंहदी के प्रां ।। आवश्यक यही है कि उपकार निस्वा भाव से किया जाना चाहिए। उसके बदले में लेने की भावना हो तो वह उपकार उपकार नहीं कहलाता। चाहे साधारण व्यक्ति हो, श्रावक हो या साधु हो, उसे उपकार निष्काम भाव से ही करना चाहिए। कहा भी है उपकुर्यात्रिराकांक्षी यः स साधुरितीयांन । साकांक्षमुपकुर्याद्यः साधुत्वे तस्य को गुणः ॥ जो निष्कामभाव से किसी का उपकर करता है, वही साधु कहलाता है। जो किसी वस्तु की इच्छा से उपकार करता है, उसकी साधुता में कौन गुण है? वह तो निरर्थक है। कहने का अभिप्राय यही है कि मानव अहंकार की भावना का त्याग करके निस्वार्थ भाव से परोपकार करने की वृत्ति रखे। तभी पुण्योपार्जन कर सकता है। झोंपड़ी में आ जाओ! एक नदी के किनारे पर किसी व्यक्ति ने अपनी छोटी सी झोपडी बनाई। झोंपड़ी इतनी छोटी थी कि उसमें केवल एक ही व्यक्ति रह सकता था। एक दिन बारिश शुरू हुई और मूसलाधार पानी गिरने लगा। झोपड़ी का मालिक अन्दर बैठा था। अचानक उसने देखा कि पानी से भी जाने के कारण एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और झोंपड़ी के द्वार से लगकर खड़ा हो गया। ठण्ड के कारण वह बुरी तरह से ठिठुर भी रहा था।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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