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________________ • [२९३] आनन्द प्रवचन भाग १ [२५] जन्माष्टमी से शिक्षा लो ! धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो! आज जन्माष्टमी है। यों तो प्रतिदिन संसार में अनेकानेक प्राणी जन्म लेते हैं और अनेकानेक मृत्यु को प्राप्त होते हैं। किन्तु उनकी जन्मतिथि को, अथवा मृत्यु की तिथि को कोई स्मरण नहीं करत तिथियाँ वे ही याद की जाती हैं, जिनमें कोई महापुरुष, महामानव अथवा अकारी पुरुष जन्म लेते हैं या जन्म-मुक्त होते हैं। इसीलिये हम आज की अष्टमी को महत्त्व देते हैं कि आज के दिन अवतारी पुरुष अथवा पुरूषोत्तम कृष्ण का जन्म हुधा था। यद्यपि अष्टमी का दिवस एक वर्ष में चौबीस बार आता है, पर तेईस बार आई हुई अष्टमी का कोई महत्त्व नहीं माना जाता और आज की अष्टमी को प्रतक नर-नारी परम आह्लाद और श्रध्दापूर्वक मनाते हैं। पुरुषोत्तम कौन कहलाता है ? संसार में अनन्त पुरुष हुए हैं, है और होते रहेंगे। किन्तु सभी को लोग पुरुषोत्तम नहीं कहते। प्रश्न उठता है कि पुरुषोत्तम किसे कहा जाता है ? क्या कामदेव के समान शारीरिक सौन्दर्य प्राप्त करने वाले को अथवा कुबेर के समान अतुल ऐश्वर्यशाली बन जाने वाले को पुरुषोत्तम कहा जाएगा ? नहीं, पुरुषोत्तम केवल वही पुरुष कहलाएगा जो इस पृथ्वी पर जन्म लेकर धर्म की रक्षा करेगा, अनीति का नाश करूंगा तथा संसार के भूले-भटके प्राणियों को सत्पथ बताएगा। ऐसे ही पुरुषोत्तम राम थे, कृष्ण थे और हमारे तीर्थकर भी थे। जिनके लिए 'नमोत्थुणं' में आता है : 'पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहा पुरिसवर पुंडरियाणं ।' ऐसे उत्तम पुरूष चौपन हुए हैं। संक्षिप्त में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव एवं नौ वासुदेव । त्रेसठ श्लाघांनेय पुरूषों में से नौ प्रति वासुदेवों को अलग कर दिया गया है। इसका भी कारण है, और वह यह है कि प्रतिवासुदेव श्लाघनीय पुरूष होते हुए भी कुछ न कुछ भूलकर बैठते हैं, कुछ दोषपूर्ण कार्य कर जाते हैं। प्रतिवासुदेव की मृत्यु भी वासुदेव देव द्वारा ही होती हैं।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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