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________________ • सर्वस्य लोचनं शास्त्र... [२९२] आशा है आपने श्लोक का विवेचन 1 भली-भाँति समझ लिया होगा। सारांश उसका यही है जो महामानव अपने हाथों से दान कर देता है, मस्तक को गुरुजनों के समक्ष झुकाता है, मुख से सात्य बोलता है, कानों से शास्त्र श्रवण करता है तथा हृदय को स्वच्छ रखते हुए अपने पुरुषार्थ के बल पर सफलता हासिल करता है। उस पुरुषोत्तम को प्रकृति बिना ऐश्वर्य के भी सुन्दरता प्रदान करती है। मनुष्य के सद्गुण ही उसके संबे आभूषण होते हैं तथा उसका शुध्द और निष्कपट हृदय आभूषणों का पिटारा । महाककी शेक्सपियर ने कहा भी है : - "A good heart is worth gold." सुन्दर हृदय का मूल्य स्वर्ण के सदृश है। इसलिए बन्धुओ, हमें प्रयत्न करना कि हमारा शरीर सद्गुण रूपी अलंकारों से सुशोभित हो। उन अलंकारों में से एक अलंकार शास्त्र श्रवण है जो कि हमारा आज का मूल विषय है। शास्त्रों का श्रवण करने से ही बुद्धि का विकास होता है, मानसिक बल बढ़ता है तथा आत्मिक गुण प्रकाशित होते हैं। जो व्यक्ति जिन वचनों पर विश्वास नहीं करता, उन्हें सुनने और ग्रहण करने का प्रयत्न नहीं करता, वह 'स्व' और 'पर' में भेद नहीं कर सकता। वह यह भी नहीं जान पाता कि आत्मा को संसार में भटकाने वाले कौन से कारण हैं तथा उसे मुक्त करने के साधन कौन-कौन से हैं। परिणाम यह होता है कि वह मनुष्य जन्म पाकर भी उसका लाभ नहीं उठा पाता और इस देह को छोड़ने के बाद पुनः नाना प्रकार की योनियों में भटकने के लिए चल देता है। किन्तु हमें ऐसी भूल नहीं करनी हैं। हमें तो मनुष्य जन्म रूपी वृक्ष के समस्त फलों को प्राप्त करते हुए अपनी आमा को निरन्तर ऊँचा उठाना है तथा ऐसा प्रयत्न करना है कि इसकी अनन्तकाल से चली आ रही यात्रा का अन्त हो। एवमस्तु ....।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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