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________________ • [१५] शरीर के लिए भोजन । " संत विनोबा भावे भी प्रार्थना पर बड़ा बल देते हैं। उन्होंने भी प्रार्थना का महत्त्व बताते हुए कहा है आनन्द प्रवचन भाग १ "मनुष्य के अन्तर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियाँ हैं। लेकिन अन्तरतर में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थन से उसी अन्तरतर में प्रवेश होता है। प्रार्थना के संयोग से हमें बल मिलता है। अपने पास का सम्पूर्ण बल काम में लाकर और बल की ईश्वर से माँग कन्ना, यही प्रार्थना का मतलब है। प्रार्थना में दैववाद और प्रयत्नवाद का समन्वय है। दैववाद में नम्रता है वह जरूरी है, तथा प्रयत्नवाद में जो पराक्रम है वह भी आवश्यक है, प्रार्थना इसका मेल साधती है। प्रार्थना अहंकार को शून्य करने में सहायक बनती है।" वास्तव में ही प्रार्थना में बड़ी शक्ति है, बड़ी ताकत है। पर वह तभी शक्तिशाली बनती है जबकि अपने आप हृदय से निकलती है। यह याचना नहीं है, वरन् आत्मा की पुकार है, इसका परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है। यह कोई मान्त्रिक वस्तु नहीं है, वस्न हृदय की क्रिया है। अतः हृदयहीन मुखर प्रार्थना की अपेक्षा शब्द रहित, पर सह्रदय प्रार्थना अनेक गुनी उत्तम है। प्रार्थना किये हुए पापों के लिए होने वाले पश्चात्ताप का चिह्न है तथा अपने दुर्गुणों का चिन्तन और परमात्मा वेन उपकारों का स्मरण भी है। सच्चा भक्त ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि मेरी आत्मा को विकाररहित बनाकर मुझे इस दुख रूपी सागर से पार उतारो। कवि हुनि श्री अमीऋषि जी महाराज भी प्रभु से यही कहते हैं कृपानाथ कृपा करी दुष्ट बुध्दि नाश कर, काम क्रोध मोह लोग चारों रिपु मारिये । होय दूर अहंकार सचे चित्त उपकार, शांत चित्त क्रेश नाश: कुबुध्दि को टारिये । मेरी लाज राखो नाथ, मैं तो हूं- अनाथ दीन कर्म रिपु टार मेरी बाँह को संभारिये ॥ अमीरिख कहे प्रभु तारन तिरन धाप, दुःखरूप सागर के पड़ा यों उतारिये ॥ - प्रार्थना में पहला ही शब्द आया है 'हे कृपानाथ करुणानिधि ! मेरे अन्तःकरण में जो दुर्बुध्दि है उसका नाश करो।' - कृपानाथ' । भक्त का कथन है आत्मा और सिद्धात्मा में अन्तर प्रश्न उठता है कि जब जीवात्मा और परमात्मा दोनों ही समान हैं, स्वरूप की दृष्टि से आत्मा और सिध्दात्मा में कोई अन्तर नहीं है तब फिर प्रार्थना किसलिए ?
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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