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________________ •[२४१] आनन्द प्रवचन : भाग १ के लिये आ जाया करना।" बालक ने गदगद् कर संत के चरण-स्पर्श किये और अगले दिन आने की स्वीकृति देकर घर चला गया। उसकी माता ने भी जब यह समाचार सुना तो ईश्वर का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया। इधर जब लोगों ने सुना कि उनके धर्म गुरु ने एक वेश्या पुत्र को विद्याभ्यास कराना स्वीकार किया है तो वे भारी विरोध करने लगे। चारों ओर उनकी निन्दा तथा आलोचना होने लगी। कुछ व्यक्ति तो संत को समझाने उनके पास भी आए। किन्तु सन्त ने स्पष्ट कहा - "घृणा पाप से करनी चाहिये, पापी से नहीं। धर्म और ज्ञान पतित-पावन हैं। वे पापी से पापी का भी उद्धार करते हैं। संसार के प्रत्येक मानव को चाहे वह किसी भी कुल का क्यों न हो उन्हें अपनाने का अधिकार है। तप कर्म के द्वारा तो वेश्या भी स्पने पापों का प्रायश्चित करके पवित्र बन सकती है। फिर यह बालक तो एकदम निर्दोष है। मैं इसे ज्ञानाभ्यास अवश्य कराऊँगा।" संत की बात सुनकर लोगों की और खुल गई और वे एक-एक करके वहाँ से चले गये। वास्तव में ही सद्गुरु ऐसे होते हैं। इसीलिए संत तुकारामजी कहते हैं कि सचे गुरु की शरण में जाओ, तभी तुम्हें ज्ञान हासिल हो सकेगा। इतना ही नहीं आगे भी उन्होंने कहा है - आपुल्या सारिखे करती तात्काल, नाहीं कालबेल तया लागी॥ बताया है कि संतों की शरण में जाने से वे तुम्हें तत्काल ही अपने जैसा बना देंगे। जरा भी समय उसमें नहीं लगेगा। शास्त्रों मे वर्णन आता है कि आनन श्रावक ने भगवान के पास जाकर बारह व्रत अंगीकार किये। और घर पर आकर अपनी पत्नी शिवानन्दा से कहा - "मैने तो भगवान से बारह व्रत ग्रहण कर लिए हैं। अच्छा हो कि तुम भी उन्हें अंगीकार लो।" उनकी पत्नी तुस्त तैयार हो गई और भमकान के समीप इस इच्छा से आई। इधर मुनिराजों के लिए, तो देरी ही क्या ? ग्राहक जिस वक्त भी माल लेने आये वे अविलम्ब देने के लिए तैयार रहते हैं। इसीलिये कहा गया है कि संत अपनी शरण में आने वाले को तुरन्त ही अपने जैसा बना देते हैं। पारस पत्थर से भी महान कुछ व्यक्ति कहते हैं कि हम सांसाकि प्राणी तो लोहे के समान हैं और हमारे गुरु पारसमणि! जिस प्रकार लोहा पास का स्पर्श करके सोना बन जाता
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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