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________________ • [२११] पर विश्वास ।" आनन्द प्रवचन भाग १ दृढ़ आस्था रखने वाले व्यक्ति का आत्मा पर या ईश्वर पर अखण्ड विश्वास होता है। एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है। एक बार ही राम नाम लेना काफी है। एक बार एक राजा से ब्रह्म हत्या हो गई। इस घोर पाप का प्रायश्चित्त लेने के लिए वह एक ऋषि के यहाँ गया। ऋषि कहीं बाहर गए हुए थे, पर उनका पुत्र आश्रम में था। राजा ने उसी से अपने पाप का प्रायश्चित्त बताने के लिए कहाः । ऋषि के पुत्र ने राजा की बात सुनवर कहा - "राजन्! आप तीन बार राम का नाम लीजिये ! आपके पाप का प्रक्षालन हो जाएगा। राजा ने यह बात स्वीकार की और वहां से चला गया। शाम को ऋषि आश्रम में लौट कर आए तब उनके पुत्र ने राजा के विषय में सारी बात बताई। पर ऋषि ने जब पुत्र के द्वारा दिये गए प्रायश्चित्त विधान की बात सुनी तो बहुत रुष्ट हुए और बोले "तूने यह क्या किया ? दृढ़श्रध्दा पूर्वक भगवान का नाम एक बार लेने से ही तो असंख्य जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। फिर तूने राजा से तीन बार राम का सम लेने के लिये कैसे कहा ? क्या तेरा विश्वास इतना कच्चा है जो तीन-तीन बार राम का नाम लेना पड़ेगा ?" पुत्र अपने पिता की यह ताड़ना सुनाकर अत्यन्त शर्मिंदा हुआ और अपनी भूल के लिए क्षमा माँगी। ऋषि के समान ही जिस व्यक्ति की श्रध्दा मजबूत होती है वही अपने पापों का समूल नाश कर सकता है, तथा अधि, व्याधि एवं उपाधि रूप त्रयतापों से मुक्त हो सकता है। श्रध्दा ही आत्मोत्थान का मूल कारण है श्रध्दा के अभाव में कोई भी मानव इस भवसागर से पार उतरने में समा नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि देव, गुरु और धर्म में सच्ची श्रध्दा रखने से क्या नहीं हो सकता ? जब कि - तारे गौतमादि कुवचन के कहनहारे,. गोशालक जैसे अविनीत को उधारे हैं। चंडकोश अहि देह सम्यक् निहाल कियो, सती चंदना के सबे संका विदारे हैं। महा अपराधी के न आने अपराध शासन के स्वामी ऐसे दीफ रखबारे हैं।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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