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आनन्द प्रवचन : भाग १
एक बार तम्बाकू के भाव बहुत गिर गए, किन्तु उनके एक मुनीम ने, जो सेठजी की जयगंज में रही हुई दुकान ' पर काम करते थे, तम्बाकू के तीन जहाज खरीद लिये तथा सेठजी को यह बात लिख दी।
सेठजी मुनीम के इस कार्य से बहुत असन्तुष्ट और नाराज हुए तथा मन की उसी स्थिति में मुनीम को लिख दिया - "आजकल तम्बाकू का भाव बहुत गिर गया है। इसलिये इतना तम्बाकू क्यों रहरीदा?" साथ ही सेठजी ने यह भी लिख दिया कि 'इस समय खरीदी हुई तम्बाकू के हानि-लाभ के तुम ही जिम्मेदार रहोगे।"
मुनीम बड़ा ही वफादार और ईमानकार व्यक्ति था। उसने सोचा कि सेठ लोग तो इसी प्रकार कहा करते हैं और जा व्यापार में मुनाफा होता हैं तो धन को चुपचाप अपनी तिजोरी में रख लेते हैं। उसने प्रत्युत्तर में कुछ नहीं लिखा।
भाग्यवशात् कुछ दिनों के बाद ही तम्बाकू का दाम बहुत चढ़ गया और उसमें लाखों रूपयों का मुनाफा हुआ।
मुनीम ने लाभ का सब रूपया अपने सेर को भेज दिया।
किन्तु सेठ ने क्या किया आप अन्दाज लगा सकते हैं? उन्होंने वह सब रूपया मुनीम को लौटा दिया और लिखा .. "मुझे धन का लोभ नहीं है। आपने जिस समय तम्बाकू का सौदा किया था, उसी समय मैंने लिख दिया था कि इस सौदे की लाभहानि के जिम्मेदार आप ही ह। साथ ही वह सौदा मैंने आपके नाम लिख दिया था। अब उसमें लाभ हुआ है तो खुशी की बात है, पर यह पैसा मैं नहीं ले सकता। क्योंकि मैंने अपनी लेखनी से एक बार जो लिख दिया उसे बदलूँगा नहीं। आप ही इस लाम के हकदार हो और इसे ग्रहण करो।" ।
अपने लिखे हुए पर दृढ़ रहकर रखनी का गौरव बढ़ाने वाले ऐसे विरले व्यक्ति ही होते हैं। इसी को लेखनी की रक्षा करना कहा जाता हैं। और रक्षा-बंधन के दिन व्यक्ति को इसी प्रकार की प्रतिज्ञा करनी जाहिये। पद्य के आगे क्षत्रियों के रक्षा-बंधन के मेषय में भी कहा गया है
क्षत्रिय खड्ग के राखी बांधे, प्रजा रक्षा ताई रे। दीन गरीब को कोई भी, नहिं सर सलाई रे।'
रक्षा आई। क्षत्रिय पुरुष रक्षा-बंधन के दिन अपनी तलवार को राखी बाँधते हैं। वह किसलिये? इसलिये कि उनकी तलवार प्रत्येक प्राणी की रक्षा करे, कोई भी अत्याचारी व्यक्ति दीन-दुखी तथा असहाय व्यक्ति पर अत्याचार न कर सके तथा ऐसा अवसर आने पर उनकी तलवार अत्याचार का प्रतिकार कर सके।