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________________ प्रार्थना के इन स्वरों में [१८२] कठियारा बोला - 'मुझे श्रीपति साहूवतर ने दिया था।' श्रीपति श्रेष्ठि को भी बुलवाया गया और उससे राजा ने पूछा - "तुमने इतना धन कठियारे को क्यों दिया?" साहूकार ने उत्तर दिया -"यह चन्दन की लकड़ी लाया था अत: मैंने इसकी लकड़ी के बराबर सोना इसे दिन है क्योंकि मेरा नियम है - बेईमानी से किसी की वस्तु नहीं लेना।" इसके पश्चात् राजा ने वेश्या के भी बुलवाया और उससे प्रश्न किया - "क्या यह वही आदमी है, जिसने तुम्हें सोने की यह पोटली दी थी?" वेश्या ने स्वीकृति दी "यह वही आदमी है। मैं इसे पञ्चानती हूँ।" तत्पश्चात् राजा ने धन कानड़ कठियारे को दिलवा दिया। कालान्तर में जब केवली भगवान उस ग्राम में पधारे तो लोगों ने उसने पूछा - "भगवन्! हमारे गाँव में बड़े नीतिवान व्यक्ति हैं। श्रीपति साहूकार ने बेईमानी नहीं की, वेश्या ने सहज में ही मिला हुआ धन ग्रहण नहीं किया, राजा ने ठीक न्याय किया और कानड़ कठियारे ने अपने व्रत का पालन धन का मोह छोड़कर किया। आप फरमाइये, कि इन सब में से श्रेष्ठ कौन है? भगवान ने भरी सभा में यही स्त्तर दिया "उन सब में कानड़ कठियारा सर्वश्रेष्ठ धन्यवाद का पात्र है।" बंधुओ, भगवान ने न सेठ की तारीफ की, न राजा की प्रशंसा। और न ही वेश्या की ही सराहना की। उन्हों में केवल कानड़ कटियारे की महत्ता बताई। वह क्यों? क्योंकि कठियारे ने व्रत का पालन किया था। और वह व्रत उसने संतों की संगति से अंगीकार किया था। यद्यपि राजा, सेठ और वेश्या तीनों ही नीतिसम्पन्न थे पर कठियारे ने जहाँ व्रत का पालन किया, वहाँ धन का लालच भी छोड़ा। इस प्रकार दोहरे कार्य किये। अत: उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिये। तो इस प्रशंसा के मूल में क्या। था? साधु-भक्ति और साधु-सेवा। अगर कठियारा सन्तों की सेवा में नहीं जाता तथा उनसे व्रत ग्रहण नहीं करता तो केवली भगवान उसकी प्रशंसा कैसे करते, और हम आज भी कानड़ कठियारे को क्यों याद करते? तो साबित हो गया न कि बड़ा कौन है? वही, जो सन्तों की सेवा करे। और वह भी, जिसके हृदय में दया करि भावना हो। आप आज लक्ष्मीपति को बड़ा कहते हैं! पर यह भूल जाते हैं कि लक्ष्मी अपने साथ पाँच बड़े भारी अवगुण लेकर आती है। वे अवगुण कौन-कौन से हैं, झा विषय में कहा है :
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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