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________________ • अनमोल सांसें... [१६२] भी प्राणों का आविर्भाव हुआ है। यह सोजना ही विवेक का सार है। श्री अमीऋषि जी महाराज इन्हीं बातों की ओर ध्यान दिलाते हुए आगे कहते हैं - जुआरी व्यक्ति के फेंतं हुए पासों के समान तथा जल में डाले हुए बतासों के समान ही इस तन का भी तमाशा है। अर्थात् जुआरी के फेंके हुए पासे जिस प्रकार अधिक देर एक ही स्थिति में नहीं रहते, तथा जल में डाले हए बतासे भी टिक नहीं सकते। इसी प्रकार यह देह भी कब तक टिकेगी, कोई भरोसा नहीं है। अत: इसे संसार-सागर से तैरने का एकमात्र साधन मानकर जितना शीघ्र हो सके, इसका उपयोग करलो! संतों का एकमात्र यही उपदेन है। उनके पास जाने पर आपको यही हितशिक्षा मिलेगी। क्योंकि वे त्यागी हैं तथा त्राग ही उनका आदर्श है। वे भली-भाँती जानते हैं कि :"स्वयं त्यक्ता हित शमसुखमनन्तं विदधति।" -योगशास्त्र इन सांसारिक भोगों का अपनी इच्छापूर्वक परित्याग कर देने से अनन्त सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि मनुष्य जैसे व्यक्ति के पास जायगा उससे वैसी ही प्रेरणा मिलेगी। भोगी व्यक्ति के पास जाने से ऐश-आराम की, आलसी के पास जाने से पुरुषार्थ-हीनता की, चोर के पास जाने से चोरी की, तपस्वी ने समीप जाने से तपस्या की, त्यागी के संसर्ग से त्याग की और ज्ञानी के पास पहुँचने पर ज्ञान हासिल करने की प्रेरणा मिलती मुझे कहना यह है कि मनुष्य को अपने विवेक से समझना चाहिए कि मेरा हित किसमें है? इसके लिए धान की आवश्यकता है। ज्ञान के द्वारा ही विवेक जागृत होता है तथा मनुष्य अच्छाई और बुराई में रहे हुए अन्तर को समझ सकता है। ज्ञान के अभाव में व्यक्ति अपना बुरा-मला नहीं सोच सकता तथा पशुओं के समान जीवन-यापन करता हुआ भव भ्रमण करता रहता है। कहा भी है : "अविधा जीवनं शून्यम्।" - जो जीवन विद्या से रहित है वह शून्य के समान है। __'पातंजलि छन्द सूत्र' में भी अज्ञान से होने वाली हानि को बताते हुये ज्ञान प्राप्ति के लिये प्रेरणा दी गई है। लिखा है : अर्धागुल-मीणाह जिहाग्रायास-भीरवः। सर्वांगीण रिक्लेशमबुधाः परिकुर्वते॥ पद्य का भावार्थ है - चो भीरु अर्थात् डरपोक व्यक्ति ज्ञान सीखने के लिये आधे अंगुल की जबान हिला में आलस्य करते हैं, उन्हें आगे जाकर साढ़े
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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