________________
• [१६१]
अनमोल सांसें...
[१४]
Pos
अनमोल सांसें...
MARWADI
धर्मप्रेमी बन्धुओं, माताओं एवं बहनों!
श्री रायप्रसेनी सूत्र में सूर्याम देवता अपन आभियोगिक - चाकर देवताओं को हित-शिक्षा देते हैं - "भगवान महावीर प्रभुत सेवा में उपस्थित होकर उन्हें विधि सहित वंदना करो और वहाँ जो भी आवश्यक हो, ममुचित व्यवस्था करो।' हंस का कारागार
जिस प्रकार सूर्याभ देवता अपने आभियोगिक देवताओं को हित-शिक्षा देते हैं, उसी प्रकार सन्त-महात्मा मोह-जाल में फंसे हुए संसारी जीवों को हित-शिक्षा देते हैं। वे बार-बार यही कहते हैं : - 'माइयो! मानव-शरीर पाया है तो कुछ करनी करलो । जाना तो निश्चित ही है, यहाँ रहना नहीं है । यह शरीर नश्वर है। आत्मा एक यात्री के समान इस शरीर-रूपी -सराय में आकर ठहरता है और समय होते ही पुन: प्रयाण कर जाता है। इसलिरे। इसकी स्थिरता पर विश्वास न करते हुए, जब तक यह विद्यमान है कुछ लाभ उठा लेना चाहिये।' महामानव पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी प्राणियों को उद्बोधन किया है :
एसे हो सयाने प्रीति ठाने या शरीर साश,
जाने नहीं पथ के बटाउ साम वासा है। पातक में राचि के गमावत वृथा ही राह,
रतन अमोल जैसा एक एक स्वासा है। परम धरम यह तिरने के दाव शुभ,
नीठ करी पायो ज्यों जुआरी का-सा पासा है। कहे अमीरिख नर देह को भरोसो कहाँ,
पानी में बतासा जैसा तन का तमासा है। कहते हैं - अरे सयाने बन्धु! इस शरीर के साथ इतनी प्रीति क्यों रखते हो? तुम जानते नहीं हो क्या, कि इस शरीर में आत्मा का एक राहगीर के समान क्षणिक निवास है। इस अशुचि के भण्डार में माहित होकर तू अनमोल रत्न के समान अपने एक-एक श्वास को वृथा क्यों खो रहा है?
बन्धु, तनिक विचार करो कि क्त, मॉम, मञ्जा तथा हड्डी जैसी किस किस प्रकार की अशुद्ध चीजों से इसका निर्माण हुआ है और किस प्रकार इसमें