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________________ • [१४९] यही सयानो काम । [१३] - यही सयानो काम ! ) RONORMATION धर्मप्रेमी बंधुओं, माताओं एवं बहिनों! श्री 'रायप्रसेनी सूत्र' में सूर्याभ देवता आने आभियोगिक देवताओं को आदेश देते हैं - "भगवान महावीर की सेवा में पहुँचो और सेवा में पहुँचकर सविधि वन्दन करो!" 'सूर्याभदेवता' वन्दना करने की विधि 'भो बताते हैं। यह हितकारी शिक्षा कहलाती है। वन्दना करना विनय है। विनय से सा सुख प्राप्त होता है। विनय के द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाते हैं फिर अन्य लाभों का तो कहना ही क्या है। हमारे शास्त्रों में विनय का महत्त्व बड़ा भारी बताया गया है। कहा है - एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मुस्खो। जेण कित्तिं सुअं सिग्ध, नीसेसचाभिगच्छइ॥ विनय धर्म का मूल है और मोक्ष उसका सर्वोत्तम फल है। विनय से कीर्ति बढ़ती है तथा प्रशस्त श्रुत-ज्ञान का लाभ हासिल होता है। जिस प्रकार मूल के बिना वृक्ष खड़ा नहीं रह सकता उसी प्रकार जिस व्यक्ति की आत्मा में विनय गुण नहीं होता वहाँ हर्म नहीं टिकता। विनय ही धर्म-रूपी वृक्ष का पोषण करता है तथा उसे हरा-भरा रखता है। उसके अभाव में धर्म-वृक्ष सुख जाता है तथा शनै:-शनै: उसका अस्तित्त्व समामा हो जाता है। विनय के अभाव में प्रत्येक मनुष्य अपनी आत्मा को शुध्द धौर उन्नत बनाना चाहता है, ज्ञानवान् और बुध्दिमान् बनना चाहता है। किन्तु विनय के अभाव में यह सब केवल इच्छा मात्र ही रह जाता है, उसकी आकांक्षा पूरी म्हीं होती। बुध्दि को निखारना और सम्यक्ज्ञान हासिल करना विनय के अभाव में कदापि सम्भव नहीं है। आप प्रायः देखते ही हैं कि एक लोटा पानी लेने के लिये भी आपको नदी या तालाब में झुकना पड़ता है। झुके बिना लोटा नहीं भरा जा सकता। ध्यान में रखिये, कि पानी मुफ्त का है, उसका कोई मूल्य नहीं। किन्तु उस मूल्यहीन वस्तु को भी जब बिना झुके प्राप्त नहीं किया जा सकता तो फिर आत्म-कल्याण
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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