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• जाणो पेले रे पार
[१२६] आने जाने में कोई रोक-टोक नहीं थी। पर महल के अन्दर भी जब कृष्ण उन्हें दिखाई नहीं दिये तो उन्होंने रूक्मिणी से पूछ। लया - "नटवर कहाँ हैं?"
रूक्मिणी ने उत्तर दिया - "पूजा बतर रहे हैं।" .
सुनकर नारदजी चकित हुए। सेन्चने लगे - त्रिभुवन के संत, साधु, ऋषि, मुनि, सिध्द, योगी, त्यागी और भोगी संगो जिसे भगवान मानकर पूजते हैं, वे खुद किनकी पूजा करते हैं?
उत्सुकता के मारे वे कृष्ण के गुजा घर में ही जा धमके पर वहाँ जाकर उन्होंने क्या देखा? यही कि कृष्ण भगावान अपने भक्तों की मूर्तियों के सन्मुख ध्यानावस्थित बैठे हुए हैं।
ऐसा होता है सची भक्ति का प्रभाव। जो कि भगवान को भी अपने सामने झुका लेता है।
संत आपसे कुछ नहीं चाहते, वे केवल आपके हृदय की शुद्धता और निर्मलता चाहते हैं, भक्तों का भगवान के लिए 'प्रेम चाहते हैं। इसीलिये वे आपके विवेक को जगाते हैं, आपकी आत्मा जो अनन्न काल से प्रमाद रूपी नींद में सोई पड़ी है, उसे प्रबुध्द करना चाहते हैं।
इसलिये आत्मार्थी बंधुओ, आपकार सजग होकर अपनी मंजिल की ओर बढ़ना है, तथा अनंत काल से जिस भव-सगार में आत्मा गोते लगा रही है उसे पार कर अगले किनारे पर पहुँचना है। मारवाई कवि की आत्मा जिस प्रकार व्याकुलतापूर्वक कह रही है
जाणो पेले। पार........ इसी प्रकार की छटपटाहट आपको भी इस भव-सागर से पार होने के लिए रखनी है तभी आप परमात्मपद की प्राप्ति कर सकेंगे। ईश प्राप्ति कैसे हो सकती है एक उदाहरण से भी यह स्पष्ट हो जाता है। प्रभु प्राप्ति का उपाय
एक साधक ने अपने गुरु से कहा - भगवन ! मुझे साधना करते करते इतना समय हो गया पर अभी तक ईशा प्राप्ति नहीं हुई। कृपया इसका सही उपाय बताइये। गुरु उस समय मौन रहे, कुछ नहीं बोले।
एक दिन वे दोनों ही नदी में स्नान करने के लिए गए। जब शिष्य ने पानी में डुबकी लगाई, गुरु ने उसे रुपर से धर दबाया। शिष्य बहुत छटपटाया और बाहर निकलने पर बोला - गुरुदेव ! ऐसा क्यों किया आपने?"
मुसकराते हुए गुरु बोले - यह बताने के लिए की जैसी छटपटाहट और आतुरता तुम्हें पानी से निकलने की थी, वैसी ही विकलता जब इस भवसागर से