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________________ • जाणो पेलेरे पार [१२४] पर्वत आदि की उँचाई पर सभी एक-दूसरे के सहायक भी बन जाते हैं। पर मुक्ति की ओर जाने वाले दुस्तर पथ पर अकेले ही चलना पडता है, न कोई साथी ही उस समय काम आता है और न रास्ते में कोई अन्य सुविधा ही प्राप्त हो सकती है। इन सब बातों को ध्यान में प्रखते हुए हमें साथ में खर्ची तो रखनी ही है, इस बात का भी पूरा ख्याल रखना है कि कहीं हमारे कुकृत्यों से पथ में शूल न बिखर जायें। चोरी करना, झूठ बोलना, मदिरापान करना, माँस भक्षण करना तथा झूठी गवाही और झूठे कलंक अशदि लगाना ही मार्ग में शूल बिखेरना है। अत: इनसे प्रत्येक व्यक्ति को बचना आवश्यक है। साधु भूखा भाव का संत तुकाराम जी कहते हैं - 'मुझे संतों ने जगाया, मुझ पर महान उपकार किया। उसके लिये में उन्हें क्या दूं।' संतों के लिए सोना, चांदी और रूपया-पैसा मिट्टी के समान है। उन्होंने तो इन सबको पहले ही छोड़ दिया है। और जिस चीज को छोड दिया उसकी वे स्वप्न में भी आकांक्षा नहीं करते। उनकी सबसे बड़ी शक्ति त्याग है। त्याग का महत्व अवर्णनीय है। त्याग के मिला मुक्ति की अभिलाषा कभी पूर्ण नहीं हो सकती। आज तक कर्म से, धन से, अथवा संतान से किसी व्यक्ति ने अमृत-रूप मोक्ष प्राप्त नहीं किया है। उसे अगर किसी ने प्राप्त किया तो एकमात्र त्याग से ही। कहा भी है - व पदे बन्ध मोक्षाय निम्मेति ममेति च। ममेति बध्यते जन्तुर्निमाति विमुच्यते॥ बन्धन और मोक्ष के दो ही आश्रय हैं - ममता और ममता-शून्यता। ममता से प्राणी बन्धन में पड़ जाता है और ममता रहित होने पर मुक्त हो जाता है। आशा है आप समझ ही गए होंगे। श्लोक का भावार्थ यही है कि मनुष्य जब तक सांसारिक पदार्थों तथा सांसानऐक संबंधों में ममता रखता है अर्थात् आसक्ति रखता है, तब तक वह संसार से मुक्त नहीं हो पाता है। संत ऐसे ही त्यागी होते हैं तथा दूसरों को भी त्याग का उपदेश देते हैं। वे भौतिक पदार्थों के समान क्रोज, मान, माया तथा लोमादि विकारों को भी त्याज्य मानते हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती को अनूप शहर में किसी व्यक्ति ने पान में विष दे दिया। जब लोगों को यह ज्ञात हुआ तो उनमें क्रोध की आग भड़क उठी। उन्होंने अपराधी को पकडकर वहाँ के तहसीलदार सैय्यद मुहम्मद जो कि स्वामी " भक्त थे, उनके समक्ष उपस्थित किया।
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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