________________
·
करमगति टारि नाँहिं टरे
और न हो तो भी क्या ?
मृत्यु से पूर्व लेना सम्भव नहीं
अशुभ कर्मों के उदय से संकट आते हैं किन्तु साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति. उनसे हार नहीं खाते। जान पर खेलकर भी वे अपने धर्म और सत्य की रक्षा करते हैं। महासती चन्दनबाला की माता धारिणी देवी की क्या स्थिति थी ? उनके यहाँ क्या कमी थी ? किन्तु अशुभकर्मों के उदय से राज्य छूटा, राजमहल छोड़कर भागना पड़ा और इतने से भी प्रारब्ध को संतोष नहीं हुआ, अतः सारथी के मन में उनके प्रति दुर्भावना उत्पन्न हुई। किन्तु ] उस पतिव्रता ने मर जाना कबूल कर लिया, धर्म छोड़ना नहीं जीते जी अपना शरीर दूसरे के हाथ में देना, वह मंजूर नहीं कर सकती थी। कहा भी है कि पाँच वस्तुएँ उन्हें धारण करने वाले के जीवित रहते कोई नहीं ले सकता -
शूरा शस्त्र, कृपण धन, पतिव्रता को गात।
केसरी मूंछ, भुजंग मणि, मरियां लगसी हाथ ॥
[१०२]
सच्चा शूरवीर जब तक जीवित ड़ता है, तब तक उसके हाथ से कोई शस्त्र नहीं ले सकता। मरने के पश्चात् ही वह उसके हाथ से छूटता है और अन्य के हाथों में आ सकता है।
सांई समय न चूकिये यथाशक्ति सम्मान,
को जाने को आई है, तेरी पौरि प्राशन।
दूसरा है कृपण का 'धन' कृष्णा न खाता है, न दान देता है, केवल धन को संचित करके ही रखता जाता है। उपभोग न करने वाला दूसरों को अपने जीते जी दे भी कैसे सकता है? सगे लडके को भी वह तिजोरी की चाबी नहीं देता। उसका भी विश्वास नहीं करता । यह नहीं सोचता कि आखिर वह कब तक सर्प बनकर अपने धन पर बैठा रहेगा ? आखिर तो उसे जाना ही पड़ेगा न! उसका लड़का आज नहीं तो कल सारे धन का मालिक हो जाएगा। पर फिर भी जीवित रहते तो वह दे ही नहीं सकता अपना धन, चाहे सूर्य पूर्व से पश्चिम में रूगने लग जाय । अगर कोई याचक उसके द्वार पर आ जाय तब तो उसे ऐसा लगता है जैसे यमदूत ही द्वार पर आकर खड़ा हो गया है। ऐसे लोगों को बोध देने के लिए कहा भी जाता है -
तेरी पौरि प्रमान समय असमय तकिं आवे, ता को तू जिय खोलि हृदय भरि कंठ लगावै ।
कह गिरधर कविराय, सबै या में रमधि आई,
सीतल जल फलफूल समय जनि को साईं।
भोग करता है, न
ठीक भी है। स्वत:
पद्य का सारांश यही है कि द्वार पर आए हुए याचक को भी निराश मत लौटाओ, उसका तिरस्कार और अपमान मत करो। कौन जाने याचक अथवा