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________________ • करमगति टारि नाँहि टरे कुछ भी नहीं, क्वचित ही सवारी का अवसर अता है । किन्तु किसी ताँगे वाले के पास रहने वाला घोड़ा दिन भर और रात को भी, सवारियों को तथा उनके मनों वजन वाले सामान को ढोता रहता है। उसकी शक्ति से भी अधिक बोझा उस पर लान जाता है। भले ही पीठ पर घाव हो जायें, उसे विश्रांति नहीं मिलती। इसका कारण क्या है? कर्मों का खेल ही तो है यह। एक घोड़े की कैसी बुरी हालत और दूसरे घोड़े की कैसी आरामदायक स्थिति ? मूल कारण इसका यही है कि रईस के यहाँ रहने वाले घोड़े ने कुछ पुण्य का उपार्जन किया था और ताँगे वाले के ग्रहाँ रहनेवाले ने अशुद्ध कर्मों का। [१००] कर्मों की लीला के बारे में क्या कहा जाय ? बम्बई के पास लोनावला नामक गाँव है। शाम के वक्त मैं उधर से जंगल की ओर जाया करता था। वहाँ पर एक यूरोपियन का पाला हुआ कुत्ता था, जिसे प्रतिदिन एक आदमी हवाखोरी के लिए लाया करता था। एक दिन मैंने उससे इस विषय में पूछा तो वह बोला -- "मैं रोज इस कुत्ते को घुमाने लाभ हूँ, नहलाता हूँ, दूध पिलाता हूँ तथा इसकी सेवा किया करता हूँ। इसके लिए ही मुत्र तनख्वाह मिलती है। " अब आप ही विचार करिये, एक कुत्ते की सेवा में आदमी नौकर रखा जाता है, उसे कारों में बिठाकर ले जाया जाता है। किन्तु अन्य अनेक कुत्ते एक-एक टुकडा रोटी के लिए सौ सौ बार डण्डे खाते हैं, घर में कदम रखते ही उसे मारकर भगा दिया जाता है। यह क्यों इसीलिए कि अपनी पुण्यवानी के बल पर एक कुत्ते ने सुखी जिन्दगी पाई। कंवल करनी में कुछ कसर रह जाने से ही पशु योनि प्राप्त हुई। अन्यथा तो जो मुख अनेकों आदमियों को भी नहीं मिलते, वे सुख वह भोगता है और दूसरा दर-दर फिरता है। चाहे कुत्ता हो, घोडा हो, या अन्य कोई भी प्राणी हो, जिसके पल्ले में पुण्य होता है, उसके लिए सुख होता और जिसके पल्ले पुण्य नहीं होता उसे दुःख होता है। केवल मनुष्य या तिर्यंच के लिए ही यह बात नहीं है। देवताओं का भी यही हाल है। इसमें आश्चर्य की कोई गात नहीं है ---- स हि गगनविहारी कल्मष-ध्वंप्रकारी, दश शत करधारी ज्योतिषां मध्यचारी । विधुरपि विधियोगात् ग्रस्यते राणासी, लिखितमपि ललाटे प्रोज्झितुं समर्थः ॥ देवताओं के पीछे भी कर्म लगा हुआ है। चन्द्र और सूर्य ये ज्योतिषी देवों के इन्द्र हैं। गगनविहारी चन्द्र कैसा है? इतना ऊँचा, आकाश में चलने वाला तथा अँधेरे की कालिमा को नष्ट करने की शक्ति रखने वाला। दश शत कर अर्थात् हजार किरण रूपी हाथ रखने वाला मनुष्य के दो हाथ होते हैं, उनके द्वारा ही वह अपने आपको गिरने पड़ने से बचा लेता है और चन्द्रमा के पास तो हजार हाथ
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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