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________________ इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित होता चला आ रहा है और होता चला जाएगा । आपकी उच्चतर साधना, भव्य व्यक्तित्व एवं आकर्षक सौजन्य आपके चारुचरित्र के द्योतक हैं। आगाल वृद्ध सभी आपके वात्सल्य का समान रूप से अनुभव करते हैं आपका सदा यही प्रयत्न रहा है कि हमारी नई पीढ़ी के बालक उत्तम संस्कार और उत्तम शिक्षा के धनी बनें तथा सामाजिक कुरीतियों को नष्ट कर सदेत । मेरा अहोभाग्य है कि मुझे आप जैसी महान विभूति के प्रवचनों के संपादन का गुरुतर भार प्राप्त हुआ है । यद्यपि मैंने संपादन कार्य में पूर्ण सावधानी बरती है, फिर भी अगर कहीं कोई त्रुटियाँ रह गई हों तो आशा है आप उदारतापूर्वक क्षमा करते हुए उन्हें सुधार कर पढ़ेंगे। मैं प्रकाण्ड पंडिता महासती श्री उमरावकुँवरजी महाराज 'अर्चना' का सर्वान्तः करण से आभार मानती हूँ जिन्होंने अपने प्रवचनों का संपादन आचार्य श्री जी के प्रवचनों का संपादन करने समय-समय पर मेरी कठिनाइयों को दूर करते कार्य स्थगित करवाकर मुझे की प्रेरणा प्रदान की तथा हुए समुचित निर्देशन दिया । अपने पिताजी पं. श्री शोभाचंद्र जी भारिल्ल की भी मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ जिन्होंने पूर्व के समान ही इस बार भी मेरा उत्साह और साहस बढ़ाते हुए मार्ग-दर्शन किया । आशा है कि प्रस्तुत पुस्तक से पाठकों को लाभ होगा तभी मैं अपना श्रम सार्थक समझेंगी । ... - कमला जैन, 'जीजी' एम. ए.
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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