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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १] के लगभग व मान थे। 'अनर्घराघव' सात-अंकों का और भवभूति के महावीरचरित से प्रभावित नाटक है। उसमे ताड़कावध से लेकर रामराज्याभिषेक तक की घटनाएँ वर्णित हैं। कविता प्रौढ़ तथा पांडित्यपूर्ण है, वर्णन प्रशस्य हैं और शब्दराशि विशाल है। इनकी उपमाओं की मौलिकता देखकर ही कहा गया है-'मुरारेस्तृतीयः पन्थाः'। रत्नाकर-काश्मीरी महाकवि रत्नाकर, अमृतभानु के पुत्र और काश्मीर-नरेश जयापीड (८०० ई० ) के सभापण्डित थे। इनके 'हरविजय' महाकाव्य में ५० सर्ग तथा ४३२१ पथ हैं। आकार के कारण ही नहीं, काव्योचित अन्य गुणों के कारण भी यह महाकाव्य संस्कृतवाङमय में विशिष्ट स्थान रखता है। यह महाकाव्य ललित, मधुर, प्रसादोपेत भाषा तथा चित्र, यमक और शेष के चमत्कारों से मंडित है। इस महाकाव्य में शंकर द्वारा अन्धक असुर के वध का वर्णन है । रत्नाकर ने 'शिशुपालवधा को मात करने के लिए इस काव्य का प्रणयन किया था और उनका प्रयास व्यर्थ नहीं हुआ। राजशेखर-ये 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' कविवर अकालजलद के प्रपौत्र तथा दुर्दुक और शीलवती के पुत्र थे। ये स्वयं यायावर क्षत्रिय थे और इनकी पत्नी अवन्तिसुन्दरी चौहान, संस्कृत और प्राकृत की प्रकाण्ड विदुषी थीं। राजशेखर महाराष्ट्र, सम्भवतः विदर्भ के रहनेवाले थे और कन्नौज-नरेश महेन्द्रपाल के गुरु थे। अतः इनका काल नवीं शती का उत्तरार्ध तथा दशमी का 'पूर्वार्द्ध माना जाता है। राजशेखर धुरंधर विद्वान थे और अपने को वाल्मीकि तथा भवभूति का अवतार समझते थे। ये भूगोल के बहुत बड़े पण्डित थे परन्तु इनका इस विषय का ग्रन्थ "भुवनकोष' आज अप्राप्य है। ये संस्कृत, प्राकृत; पैशाची तथा अपभ्रंश के दिग्गज विद्वान तथा लेखक थे। इनके चार नाटक उपलब्ध हैं—कर्पूरमंजरी, विद्धशालभंजिका, बालरामायण और बालभारत अथवा प्रचण्डपाण्डव । कर्पूरमंजरी प्राकृत में लिखित एक 'सट्टक' है जिसमें चण्डपाल तथा राजकुमारी कर्पूरमंजरी का विवाह चित्रित किया गया है। विद्धशालभंजिका चार अङ्कों की प्रेमाख्यानात्मक नाटिका है। बालरामायण दश अङ्कों का महानाटक है। बालमहाभारत के दो ही अंक प्राप्त हैं। भाषा-कौशल तथा सुन्दर उक्तियों से युक्त होने पर भी इनके नाटक नाटकीय कला की दृष्टि से उत्कृष्ट नहीं माने जाते। इनका महाकाव्य 'हरविलास' तो आज उपलब्ध नहीं है परन्तु 'काव्यमीमांसा' इनका अलंकारविषयक प्रौढ़ ग्रन्थ है। वत्सराज-कालिंजर-नरेश परमर्दिदेव (१९६३-१२०३ ई०) के मन्त्री वत्सराज के छह रूपक उपलब्ध हुए हैं-१. किरातार्जुनीय-ज्यायोग, २. कपूरचरित, ३. हास्यचूड़ामणि, ४. रुक्मिणीहरण, ५. त्रिपुरदाह और ६. समुद्रमंथन । किरातार्जुनीय-व्यायोग की रचना भारवि के किरातार्जुनीय के आधार पर हुई है। कपुरचरित 'भाण' में घतकर कपूर ने स्वरोचक अनुभव -वर्णित किये हैं। हास्यचूडामणि एकांकी प्रहसन है। रुक्मिणीहरण चतुरात्मक 'ईहामृग है। त्रिपुरदाह चतुरंकी 'डिम' है जिसमें शिव द्वारा त्रिपुर असुर के पुर के विध्वंस का वर्णन है। समुद्रमंथन भ्यंकी 'समवकार' है जिसमें समुद्रमंथन तथा लक्ष्मी विष्णु के विवाह का चित्रण है। भास के पश्चात् वत्सराज ने ही अनेक प्रकार के रूपकों की रचना की है। इनके लवा. कार नाटकों की शैली सरल और सशक्त है। उनमें नाटकीय क्रियाशीलता और रोचकता प्रचुर है। बाल्मीकि कहते हैं वाल्मीकि पहले एक दस्यु थे परन्तु सत्संगति से ऋषि बन गये। वे भारत के आदिकवि माने जाते हैं और रामायण आदिकाव्य । श्रद्धालु लोगों का विश्वास है कि रामायण की रचना श्री राम के आविर्भाव से सहस्रों वर्ष पूर्व की जा चुकी थी परन्तु आधुनिक विद्वान इसे आज से प्रायः ढाई सहस्र वर्ष पूर्व की कृति बताते हैं। अधिकतर विद्वान इसके उत्तरकाण्ड को पूर्णतः और बालकाण्ड को अंशतः प्रक्षिप्त मानते हैं। रामायण में २४०० श्लोक हैं जिनमें बहुलता अनुष्टुभ् छन्द की हैं। उत्तरी भारत, बंगाल तथा काश्मीर में रामायण के For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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