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________________ शायद कपिली पार कर ही इधर आये थे । चार के हाथों में बन्दूकें, पीठ पर बोरे और पैरों में बूट थे । खाकी वर्दी भी बिलकुल गुड़ी-मुड़ी दीख रही थी, शायद दो-तीन दिनों से बदली नहीं होगी। मुंह सूखे हुए थे। एक के हाथ में ज़रीब थी । गोसाईं को देख एक ने टूटी-फूटी हिन्दी में कहा : "मायङ कितना दूर ? वहाँ से काजलीमुख कितना दूर ?" "यहाँ से मायङ साढ़े सात मील और काजलीमुख बारह मील है।" गोसाई ने शुद्ध हिन्दी में उत्तर दिया । दूसरे फ़ौजी ने पूछा : " नाव से कितना टाइम लगेगा ?” गोसाईं ने बताया : "काजलीमुख तक चार घण्टे ।" आगे खुद ही प्रश्न कर बैठे, "आप क्या यहाँ ज़मीन नाप करने आये हैं या कोई और काम है ?" फ़ौजी ने हँसते हुए जवाब दिया : " सुना है, इस इलाक़े में काफ़ी धान हुआ है, लेने आया है ।" गोसाईं कुछ बोले नहीं । उन्होंने कोंवर और भिभिराम को आगे बढ़ने का इशारा किया। कुछ दूर आगे एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचकर कहने लगे : “भिभिराम, समझ गये न, क्या हो रहा है ?” " समझने को कुछ भी बाक़ी नहीं । इन्हें किसी ने यहाँ धान होने की ख़बर दी है। ज़रूरत पड़ने पर ये खेत से भी धान काटकर ले जायेंगे । यही न !” “हे कृष्ण, दाम देंगे या नहीं ?" आहिना कोंवर को चिन्ता व्यापी । "दाम तो देंगे ही, लेकिन बाज़ार भाव से आठ रुपये कम ।" "डाकू कहीं के ! हे कृष्ण । " "मुझे तो कुछ और ही सन्देह हो रहा है," गोसाईं बोले । "क्या ?" भिभिराम ने पूछा । इन्हें बुलाया किसने ? मुझे तो लगता है कि यह लयराम के सिवा और किसी करतूत हो ही नहीं सकती ।" "अरे वही, अपना लयराम ? हे कृष्ण, हो सकता है । उसके तो धान का भी कारोबार है : पुराना धन्धा । मायङ के सब लोगों का धान वही खरीद लेता है ।" गोसाईं ने कहा, "उसने यह अच्छा नहीं किया । इसके पीछे कुछ और रहस्य जान पड़ता है । मिलिटरीवाले तो उसी के यहाँ टिकते हैं न !” "टिकेंगे क्यों नहीं ।" आहिना कोंवर ने अनुमोदन किया । "यह तो जाने पर ही पता चलेगा कि वहाँ रात में क्या होता है । हे कृष्ण, उस रखैल ने आप लोगों के कुल को भी कलंकित कर दिया है। वह अब सम्पत्ति में भी हिस्सा माँग रही है । कृष्ण-कृष्ण !” "तब तो मेरा सन्देह ठीक है," गोसाईं ने कहा । "लेकिन आप और बानेश्वर 76 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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