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________________ चला रहा था, उसे इधर कई वर्षों से लयराम नीलामी में लपक लेता था । बाध्य होकर वह गोसाईं के पास चला आया था । गोसाईजी की अपनी खेती-बारी है और पोखर भी । वे स्वयं इन्हें नहीं देख पाते; सारी देखभाल दूसरों से ही कराते हैं । मधु उनकी जमीन को बटाई पर जोता है। साथ ही, पोखर में मछली भी पकड़ा करता है । गाँव के और भी कई हैं जो इसी प्रकार अपनी जीविका चलाते हैं। गोसाईजी ने दुनिया देखी है । देश में दूर-दूर तक घूमे - फिरे हैं । इसलिए व्यवहार कुशल ही नहीं, प्रबुद्ध भी हैं वे । साँझ के समय उनके यहाँ प्रायः बैठक जमा करती । ऐसी ही एक बैठक में रेलगाड़ी उलटने का निर्णय लिया गया था । उस समय वह समझ नहीं पाया था उसकी कि ऐसी कार्रवाई से होगा क्या । अब जैसे-जैसे समय निकट आता गया, समझ में पैठता चला कि उस सबका अर्थ क्या होगा । कुछ दिन पहले गोसाईंजी के यहाँ एक बैठक में जो कार्यकर्ता लोग इकट्ठा हुए थे वे सब भी इसी पर विचार करते रहे थे । स्वभावतः अब उसे लग रहा है कि यह कार्यक्रम गांधीजी के सत्याग्रह का भाग नहीं है । यह तो सीधे-सीधे जीवहत्या होगी; नरमेध । धनपुर के होंठों में दबी बीड़ी अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खो आयी थी । मधु और वह दोनों अब एक पहाड़ी सोते के पास जा पहुँचे थे। वहीं एक पुलिया भी थी । उस पर खड़े होकर दोनों ने क्षण-भर के लिए दूर-दूर तक देखा । कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ा । " ज़रा दियासलाई की एक तीली तो जलाओ ।" मधु ने कहा । “नहीं,” मुँह की बीड़ी फेंकते हुए धनपुर फुसफुसाया । I "अरे यहाँ कोई नहीं । डरो मत। इधर शहतूत का जंगल है। उसके पार नदी और किनारे-किनारे बलुई धरती । लयराम का घर भी वहीं कहीं है ।" मधु को धनपुर में फिर भी कोई सुगबुगी जगती नहीं लगी । तीली जलाना तो दूर उसने जेब से दियासलाई तक नहीं निकाली। इतना अवश्य धीरे से कहा कि इस सोते में घुटने-भर पानी होगा, हम लोग आसानी से पार कर लेंगे । मधु ने बताया : "पुलिया से दो हाथ आगे दायीं ओर मुड़ते ही एक पगडण्डी है । उसी से आगे बढ़ना ठीक रहेगा ।" दोनों पुलिया से नीचे उतर आये और गऊघाट की ओर बढ़े चले । सोते में पानी सचमुच कम था । आसानी से उसे पार करके दोनों पगडण्डी की ओर बढ़ने को हुए कि अचानक किसी के खखारने की आवाज़ आई । मधु एक क्षण को सहम सा गया । धनपुर के कान में फुसफुसाया : "लगता है फ़ौजी पहरे पर हैं। उधर से जाना ठीक नहीं। इधर आओ । लयराम के पिछवाड़े की तरफ़ जो घना जंगल पड़ता है, उधर निकलना ठीक मृत्युंजय / 43
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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