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"भगवान को उसने पुकारा था क्या ?"
"हाँ ! कह रही थी, अपनी पूरी शक्ति लगाकर उसने कृष्ण-हरि और राम को पुकारा था। पर कोई फटका तक नहीं । अब उसे भी लगने लगा है कि अग- वान-भगवान कहीं कोई नहीं।'
माणिक बॅरा ने कहा :
"तो यह सब उसके पूर्व-जन्म का फल है भाई । कर्मफल शेष न रह जाने पर भगवान आयेंगे ही।"
धनपुर ने नाक से धुआँ छोड़ते हुए कहा : "मिथ्या ! पूर्वजन्म-परजन्म सब मिथ्या! जो है वही एक जन्म होता है।" माणिक बॅरा से उत्तर देते न बना। कहने लगा :
"अंग्रेज़ों ने स्कूलों में ग़लत-ग़लत शिक्षा देकर बच्चों का दिमाग खराब कर दिया है । उलटे शास्त्र पढ़कर सब कोई 'उलट बुद्धि' हो गये हैं।"
धीमे स्वर में धनपुर ने कहा :
"माणिक भइया, मैंने पढ़-पढ़कर नहीं, झेल-झेलकर सीखा है । पर डॉक्टर जीजा तो प्राणी-विद्या जानते हैं। उनका भी कहना है कि ईश्वर नहीं है, केवल प्रकृति हुआ करती है।"
"नहीं भाई, प्रकृति और पुरुष दोनों हुआ करते हैं, और दोनों के नियन्ता हैं एकमात्र माधव ।”
धनपुर हँस दिया :
"देखा और जाना तो प्रकृति को ही। कुछ 'और' तो कहीं दिखाई पड़ा नहीं। फिर कैसे उस 'और' पर विश्वास कर लूं ?"
माणिक बरा झल्लाहट में बड़बड़ाने लगा : "तीन दिन बीत गये और काम के नाम कुछ नहीं । तुम जैसों का तो संग-साथ न होना ही भला। सुनता हूँ तुम्हें मद्य-मांस से भी परहेज़ नहीं और जात-कुजात, मुसलमान-क्रिस्तान, नगामिकिर सबका छुआ खा लेते हो!" ।
इस बार धनपुर ने और भी ज़ोर से कश खींचा और व्यंग्य-भरी मुसकराहट के साथ गाने लगा :
ईश्वर परम करे अकर्म ।
तेजस्वी को नहीं अधर्म ॥ और माणिक बरा ने झोले को एक कन्धे पर से दूसरे कन्धे पर पलटते हुए गाया:
तर्क वेदागम ज्ञान योगशास्त्र में, कहते मनुज को अन्ध ।
कोटि-कोटि जन्म ले मुझे न जानते, यदि रहे तम का बन्ध । भिभिराम अब तक दोनों के तर्क-वितर्क सुन रहा था। अब बोला :
• 24 / मृत्युंजय