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है। देखो कितना क्या कर पाता है। जेल में कल सवेरे परेड होने की बात है। जल्दी प्रमाणित करना तो कठिन होगा । दारोगा शइकीया किसी गारो औरत को पकड़ लाया है। वह कैसी है ?"
"उसके सम्बन्ध में चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं। वह ठीक है।" रूपनारायण ने कहा।
"मैंने और भी कई वकीलों को रख लिया है।"
शइकीया ने एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली। कश लगाते हुए फिर बोले : “मैं जितनी भी कोशिश हो सकेगी, अवश्य करूँगा। तुम बिलकुल निश्चिन्त होकर लौटो। लेकिन तुम जाओगे कहाँ ?"
"कलियाबर की ओर जाने का इरादा है। उधर ही कहीं छिपने में सुविधा होगी।"
"तब जल्दी ही तैयार हो जाओ। चाहो तो थोड़ा आराम भी कर सकते हो । तड़के ही चल दूंगा। मैं तुझे अपनी ही गाड़ी में भेज आऊँगा । और टिको ?"
"उसे रहने दीजिये। वह कल के परेड का समाचार लेकर ही लौटेगा।" रूपनारायण ने कहा।
"अच्छा ।" तभी शइकीया को ध्यान आया। कहने लगे :
"हमारे पुरोहित बरठाकुर को भी इन लोगों ने गिरफ्तार कर लिया है। वे विवाह कराने भी नहीं आ सकेंगे। कल एक पुरोहित को भी खोजना पड़ेगा।"
इस बार रूपनारायण ज़ोर से हँस पड़ा। उसे लगा, आरती का विवाह एक मज़ाक़ बन गया है। हाँ, विवाह एक मज़ाक ही तो है। भला मन्त्र, पुरोहित, रीति-रस्म-इन सबका विवाह यानी दो हृदयों के वास्तविक मिलन से क्या मतलब ? विवाह तो उन दो हृदयों का पूर्ण, पवित्र और अविच्छेद्य सम्बन्ध है। ये सब केवल ऊपरी दिखावे हैं। इनमें किसी प्रकार की सचाई नहीं होती। रूपनारायण को जीवन की विडम्बना पर हँसी आयी।
शइकीया ने आश्चर्यवश पूछा। "क्यों, हँस क्यों दिये?"
रूपनारायण ने सिर झुका लिया : शइकीया ने यही प्रश्न दुहराना चाहा कि तभी अनुपमा भागती हुई अन्दर आयी और बोली :
"सर्वनाश! पुलिस यहाँ भी आ पहुँची है। उसने घर को घेर रखा है । अब क्या किया जाये?"
उसका तात्पर्य रूपनारायण को छिपाने से था। शइकीया निरुपाय थे। उन्होंने रूपनारायण की ओर देखा । अनुपमा ने बाहर के किवाड़ बन्द कर दिये। रूपनारायण ने धीरज से कहा :
"एक उपाय है।"
मृत्युंजय | 249