________________
"गर्भवती होने पर भी इसे जाना ही पड़ेगा । जैसी मुतिया वंसी कुतिया, काई सुनवाई नहीं होगी । और हाँ, आपको भी चलना है । आपको भी गिरफ़्तार किया जाता है ।"
"क्या !" बरठाकुर की आँखें विस्मय और क्रोध से लाल हो उठीं । बोले : "आप लोगों में कोई विचार नहीं रह गया है क्या ?"
इकीया ने हँसते हुए कहा, "पहले गिरफ्तार, फिर विचार । चलिये ।” दुबले-पतले, साँवले और कुरूप बरठाकुर । खुले बदन ही बाहर निकल आये । पैरों में खड़ाऊँ पहने थे। पीछे लम्बी चोटी लटक रही थी । बोले : "गिरफ्तारी का परवाना है ?"
" गाँव के सारे लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश है । आप भी कोई छोटेमोटे विद्रोही नहीं हैं। चलिये । आपको मालूम नहीं, कि यहाँ एक सी०आई०डी० और एक मिलिटरी का जवान लापता कर दिये गये हैं ?" शइकीया ने गम्भीर स्वर में उत्तर दिया ।
बरठाकुर कुछ देर तक निर्विकार भाव से शइकीया को देखते रहे । उन्हें लगा कि इससे बात करना बेकार है । कोई लाभ नहीं होगा । वे जाने के लिए तैयार हो गये ।
उस रोज़ रात तक कुल चार सौ स्त्री-पुरुष गिरफ्तार कर लिए गये । उन सबों को पैदल ही नगाँव थाने तक रवाना कर दिया गया।
पथरीले रास्ते से होते हुए टिकौ और रूपनारायण एक पहर रात बीततेबीतते शहर पहुँच गये । रूपनारायण ने कहा :
"टिको, अब भुइयाँ के घर की ओर चला जाये। वहीं चलकर कोई वकील तय करेंगे। एक-दो को नहीं, पचास आदमियों को रेल उलटाने के मामले में फँसाया गया है । सभी पकड़ भी लिये गये हैं ।"
1
"हाँ, पहले वहाँ चलना ठीक रहेगा,” टिकौ ने कहा । "इतनी जल्दी किसी वकील को पटा लेना भी तो आसान नहीं । मुँह से सब-के-सब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर कहा नहीं जा सकता कि अंगरेजों के विरुद्ध खड़ा होने का साहस कितनों में है ! वहाँ भुइयाँ के लड़के ही कुछ बता सकेंगे ।"
हयबर गाँव से कलङ पार कर वे जेल की बग़लवाले रास्ते से चुपचाप आगे बढ़ते गये। जेल के पास पहुँचते ही रात के नौ बजने की घण्टी सुनाई पड़ी । वहाँ सामने के मैदान की ओर देखकर रूपनारायण ने कहा :
"उस ओर कुछ शोर-गुल हो रहा है । चलकर देख लिया जाये, कहीं अपने ही लोग तो नहीं हैं ।"
मृत्युंजय / 231