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________________ देर वैसे ही पड़ी रहने के बाद वह उठी । अपने को सँभाला और फिर कपड़े उठाकर कुएँ पर स्नान करने चली गयी । वापस आकर खाना खाने ही बैठी थी कि तब तक शइकीया कुछ और मिलिटरी के जवानों को लेकर वहाँ फिर आ धमका। वह सीधे रसोईघर में घुस आया । आते ही उसने डपटा : "जैसी है, वैसी ही निकल आ : हम तुझे गिरफ्तार करेंगे।" क्यों? क्या बिगाड़ा है तेरा?" रतनी बाहर निकल सीधे शइकीया के सामने आ खड़ी हुई। ____ "तेरी कोई भी करतूत हमसे छिपी हुई नहीं है। मरद को भगा देने का बदला तुमसे ही लिया जायेगा।" फिर शइकीया ने मिलिटरीवालों की ओर देखते हुए कहा, "उसे बाहर निकाल लाओ।" रतनी गुस्से में आग हो गयी । बोली : "इसलिए मर्द हुआ है न ! मरद का बदला उसकी औरत से लेने पर तुले हो ! तुम लोगों के पास नीति, मर्यादा, धरम कुछ भी नहीं रह गया है। तुम लोगों का सत्यानाश न हो तो कहना, हाँ।" इतने में दो फ़ौजी जवान आगे बढ़े और उसे बाहर निकल आने को कहा। रतनी ललकारते हुए बोली : __ “खबरदार, जो मुझे छुआ भी। मैं ख द ही आ रही हैं। पहले मैं खाना तो खा लं।" शइकीया का सन्देह और भी बढ़ गया। कहा : "फिर उस समय किसका जूठन धो रही थी ?" "चाहे जिसका भी धोऊँ, तुझे मतलब ? और अब ज्यादा बक-बक मत कर । पहले मुझे खा लेने दे," कहकर रतनी भीतर चली गयी और एक थाली में भात, मछली का झोल, भाजी और दाल लेकर खाने वैठ गयी। चोट आ जाने पर भी उसे किसी से कोई डर-भय नहीं था। उसे लगा-शइकीया को वहाँ जितनी अधिक देर तक उलझाये रखा जायेगा, उसके पति के हित में उतना ही अच्छा होगा। एक और यम है कामेश्वर, लेकिन शइकीया के न रहने पर कुछ नहीं कर सकेगा । इतना तो है कि अगर शइकीया दायाँ हाथ है तो वह बायाँ हाथ । औरत की लाज, घर की रीति-नीति और माया-ममता सबको इन दुष्टों ने ख़तम कर दिया है । नगाँव के लोग अब अत्याचार के सामने झुकने के नहीं । अब तो बिलकुल सीधी टक्कर है । अब रोने-धोने से कोई लाभ नहीं। भला जयमती कभी रोयी थी? __ "राक्षसिनी ! खाना खा रही है या ढोंग कर रही है ?" शइकीया आपा खोकर बोला। उसे बाहर इन्तज़ार करते हुए अब तक आधा घण्टा हो चुका था। __थोड़ी देर बाद रतनी उठी और खाना पकाने के बर्तन, जूठी थाली वगैरह लिये हुए कुएँ की जगत पर जा जमी। शइकीया भी दांत पीसकर रह गया। मृत्युंजय | 229
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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