SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाभी को मत बतलाना। वह कुछ समझती ही नहीं है। बात भी छिपाना नहीं जानती है वह ।" "अच्छा भैया।" रतनी अपने घर में चली गयी । उसने देखा कि रसोईघर का दरवाजा खुला हुआ है। वह समझ गयी । भीतर टिको को देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । उसके साथ एक कोई और था। दोनों खाना खा रहे थे। साथ आया हुआ युवक मेमनसिंहिया पोशाक पहने हुए था। रतनी ने पूछा, “ये कौन हैं ?" ____ "खाने के लिए मैंने तुम्हारा इन्तजार नहीं किया और हां, यह अपना रूपनारायण है। भगाकर ले आया हूँ। अभी तुरन्त छिपाकर भेजना होगा। मेरी कुदाल आँगन में ही रख दो। ससुरे कामेश्वर ने इसे भी देख लिया है। क्या करूँ, कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।" "उसे पता कैसे लगा?" "हरामजादा सबको पहचानता है । वही तो सबको पकड़वाने पर तुला हुआ है । तू जा, जल्दी से पान तो बना ला।" "और कुछ नहीं चाहिए क्या ?" "नहीं।" इस बार रूपनारायण ने गर्दन उठाकर रतनी की ओर देखा और बोला : "आपके लिए तो कुछ भी नहीं छोड़ा। खटमिट्ठी पाम मछली भी पूरी डकार गये । ढेकिया साग भी खत्म हो चुका है। हाँ, मटर की दाल बड़ी अच्छी बनी है। और कुछ नहीं चाहिए।" "अगर थोड़ा-सा आराम करना हो तो कर लें," रतनी ने कहा। "आराम के लिए समय कहाँ है ? यहाँ से भागने में ही कुशल है।" रूपनारायण के चेहरे को देखकर रतनी का स्नेह उमड़ आया। एकदम कच्ची उमर दिखी उसकी । और चेहरा एकदम दप-दप ललाम । कहा : "रचकी मछुआरिन आयी थी, वह एक बात कह रही थी।" "कौन-सी बात?" हाथ में भात का कौर उठाये हुए ही रूपनारायण ने पूछा। "वह आज शहरवाले शइकीया वकील के घर से लौट रही थी। कह रही थी कि वकील साहब के यहाँ लड़की का ब्याह है। लड़की शायद उदास है। उसका ब्याह कभी तुमसे होने की बात चली थी क्या ?" रतनी ने कौतूहलवश पूछा। ___ रूपनारायण और नहीं खा सका । झटपट लोटा लेकर मुँह धोने उठ गया। रतनी ने रोकते हुए कहा, "मैं चिलमची यहीं उठा ले आती हूँ। उसी में मुँहहाथ धो लीजिये । बाहर जाना ठीक नहीं है।" और वह एक बड़ा-सा भगौना उठा लायी। टिको को कुंछ गुस्सा-सा आ गया । बोला : 226/ मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy