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________________ भी बुरी तरह अटा हुआ था। वह कुछ समझ न पायी। कहीं उसके अन्तर की घुटन ही तो नहीं धंधुवा रही है-भीतर और बाहर ! धनपुर को खोकर उसका हृदय खाली हो गया था। उसमें एक अतृप्त-सी प्यास भटक रही थी और उसे उसकी बुझी हुई साँसें ढो रही थीं। वह डिलि तक को भुलाये बैठी थी । दारोग़: की वर्दी में शइकीया उसके सामने खड़ा था. उसे डि लि की गिरफ्तारी की याद हो आयी। शइकीया उसके सामने क्यों खड़ा था यह वह नहीं समझ पायी। दरअसल वह अभी भी सहज नहीं हो सकी थी। बचपन से ही वह जिस मूर्ति को अपने हृदय में स्थान दे चुकी थी, पूजती रही थी वह इतने वर्षों बाद अचानक आया और सदा के लिए विदा हो गया ! डिमि को विक्षिप्त छोड़ गया ! ___ ऐसा न था कि डिलि उसका योग्य पति न था। लेकिन पति के अंग से लगकर भी वह धनपुर की अदृश्य और सुखद छाया से मुक्त न हो पायी थी। खातेपीते, सोते-जागते वह उसकी परछाई को महसूस करती रहती । इससे उसे शान्ति मिलती थी। डिमि बावली-सी हो दियासलाई खोज रही थी। नहीं मिली। नासपीटे उसके सारे घर को ही तहस-नहस नहीं कर गये, बल्कि उसके मन-मस्तिष्क भी झकझोर गये हैं। वह क्या खोज रही है, यह भी भूल गयी। बार-बार धनपुर की बातें उसके मन में घुमड़ने लगतीं, उसका चेहरा आँखों के सामने तिरने लगता। ___वह जहाँ चला गया है वहाँ भी कोई नगर होगा ! नगाँव की नरह। नदी भी होगी वहाँ–कलङ-सी ! सुभद्रा मिली होगी उसे ! क्या उसके साथ वह वहाँ घर बसाकर रह पायेगा ! दियासलाई खोजते-खोजते सहसा उसका हाथ डिलि के दाव पर पर पड़ गया। लोहार के यहाँ से अभी हाल ही ख़रीदा गया था-एकदम नया। उसे खाट के नीचे रख वह फिर से दियासलाई खोजना ही चाहती थी कि अचानक किसी के पैरों की आहट सुन उसने दाव को हाथ में कसकर पकड़ लिया। "डिमि !" "क्या है ? यहाँ से सही-सलामत निकल जाओ, दारोगा ! मेरे घर में घुसने की तुमने हिम्मत कैसे की?" उसने अपनी मुट्ठी को दाव पर और भी कस लिया। पूरी तरह से चौकन्ना हो गयी थी वह । शइकीया ने टॉर्च से डिमि के मुंह पर रोशनी फेंकी। रोशनी पड़ते ही वह लम्बी साँस ले फंफकारती नागिन की तरह दाव लिये सामने आ खड़ी हो गयी। मुट्ठी को उसने तनिक भी ढीला न होने दिया। रोशनी में उसने देखा, मानो शइकीया उसकी ओर देख-देखकर वैसे ही हँस रहा है जैसे जाल में फंसी हिरणी को देखकर शिकारी। आगबबूला हो वह बोल उठी : मृत्युंजय | 199
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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