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________________ और भिभिराम जाने को बाध्य हो गया । वह शर्म से भर गया। सिर झुकाये ही वह उठा और खाई को लाँघते हुए ऊपर जाकर आहिना कोंवर के पास जाकर बैठा । "आ गये । लो, पान खा लो।" आहिना ने भिभिराम को देखते ही कहा । उसकी सारी देह गर्म हो उठी थी । उसने एक बार चारों तरफ़ दृष्टि दौड़ायी । मधु चापरमुख की ओर रेल पटरियों पर ध्यान जमाये था और चट्टानों के बीच से रूपनारायण पानीखेत की ओर । गोसाईजी भी बन्दूक का घोड़ा थामे जमे हुए थे। चारों ओर निस्तब्धता थी । बांसों की पत्तियाँ तक नहीं हिल रही थीं । गोसाईंजी के सिर के ठीक ऊपर शाखा पर एक पक्षी बैठा हुआ था, सर्वथा अपरिचित । अकस्मात् मधु ने इशारा किया। शायद गश्ती दल वाले दिखे हों। वह तेजी से खाई के किनारे आ गया और शीघ्रतापूर्वक बन्दर की नाई ऊपर चढ़ने लगा । किन्तु मुसीबत अभी टली नहीं थी । वह सोचने लगा : गोसाईंजी ने अब तक गोली क्यों नहीं दागी ? मधु क्यों रुका 'शायद किसी के आने की आहट मिली है । पर पता नहीं चला कि कौन है वह ! इधर धनपुर ऊपर की ओर चढ़ता ही जा रहा था । एकाएक उसे लगा जैसे उसका दायाँ पैर टूट गया हो। उसकी पीड़ा बढ़ गई थी। पैर को हिला-डुला पाना भी उसे सम्भव नहीं हो पा रहा था। लेकिन हाँ, बन्दूक चलने की आवाज़ उसके कानों में भी पड़ी । सिर्फ़ एक बार ही नहीं, एक बार और। शायद मधु ने गोली चलायी होगी ! आवाज़ ऊपर से आयी थी । वह घूमकर देख भी न पा रहा था । इसी बीच नीचे से भी दो वार गोली चलने की आवाज़ आयी । ध्यान देने पर उसे अन्दाज़ हो गया कि गोली गोसाईजी ने ही दागी है। इसके बावजूद चारों ओर सुनसान था । हाँ, खाई से वह पक्षी डरकर उड़ चुका था । जंगल से भी और सारे पक्षियों के उड़ने की आवाज़ आ रही थी । धनपुर ने अपने सीने पर हाथ रखकर अनुभव किया कि उसका फेफड़ा अभी चल रहा है । अभी उसको गति बन्द नहीं हुई है । फिर उसने अपना सिर टटोलकर देखा । वह भी ठीक-ठाक है। सिर्फ़ टाँग से खून बह रहा था । गोली उसमें की नहीं थी, शायद लगते ही निकल गयी । फिर वही निस्तब्धता । उसने इस बार रेलवे लाइन की ओर दृष्टि दौड़ायी । थोड़ी दूरी पर दो मिलिटरी वाले पीठ के बल गिरे पड़े थे । वह उन्हें देर तक देखता रहा । उसे विश्वास हो गया कि दोनों मर चुके हैं। उसके मुख पर मुसकान की रेखा खिच आयी । यदि वे मरते नहीं तो आज न जाने क्या हाल होता । और फिर मिलिटरी एक्सप्रेस भी कैसे उलटी जाती ! लेकिन अब आशा बाँधी जा मृत्युंजय | 163
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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