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________________ दोनों गुफा देखने चले गये। कॅली ने कन्धे से झोला उतारकर उसमें रखी तकली निकाल ली। तकली बड़ी थी। वह वहीं बैठकर सूत कातने लगी। उसकी आँखों से आँसू बह चले थे । उसके मन में एक आलोड़न हुआ, मानो कोई तूफ़ान चल रहा हो : प्रबल तूफ़ान । और उस तूफ़ान में जंगल के पेड़-पौधे जड़-मूल से उखड़ कर गिर रहे हों। कुछ भी शेष नहीं रह गया हो। केवल आलोड़न और आन्दोलन ! और आँखें झरना बन गयी थीं। चट्टान पर पड़े हल्दी के दाग़ उसके आँसुओं से मिलकर लाल हो उठे। काफ़ी देर तक तकली चलाते-चलाते कॅली का मन सूत कातने में तल्लीन हो गया। निर्झर अब सूख चुका था। आँसू थम चुके थे । उसकी जगह अब चमक उठी थी आँखों में शाम की मैली धूप की निखरती हुई हँसी। 150/ मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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