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________________ "दधि मास्टर ! यदि तुम हमारे काम में बाधा उपस्थित करने आये हो तो वैसा नहीं हो सकेगा । और यदि डरते हो तो उसका परिणाम स्वयं भोगोगे ही। हाँ, यदि काम करने को सोचते हो तो यहीं रुक जाओ। यह सुविधाजनक स्थान है । गुप्त शिविर बनाकर यहीं से काम करेंगे। हमें अभी जाना है । इधर से इस ओर जाकर दाहिनी ओर मुड़ते ही दो गुफाएँ मिलेंगी। उन्हें साफ़-सुथरा कर तुम वहीं ठहरो । तब तक हम लोग अपना काम पूरा करके लौटते हैं।" रूपनारायण के चेहरे की ओर देख दधि स्तम्भित रह गया । गोसाई ने बताया : "हमारे और साथी मिलिटरी एक्सप्रेस उलटने के लिए जा चुके हैं। हमें देर हो रही है । शकीया के आदमी यदि आयें तो तुम लोग उनका यहीं प्रतिरोध करना । तब तक तो हम लोग काम पूरा कर चुके होंगे ।" दधि ने कहा : "एक बार और सोच लीजिये । क्रान्ति यहीं नहीं समाप्त हो जाती । और भी अनेक काम करने होंगे। गुरिल्ला-वाहिनी गठित करने के लिए हमारी एक निश्चित योजना भी तो होनी चाहिए ।" "योजना तो है ही । उसे ही कार्यरूप में परिणत करने के लिए तैयार रहना होगा ।” गोसाई ने कहा । "विचलित होने से कोई लाभ नहीं । तुम यहीं रुको। कॅली बहन, तुम भी यहीं रुकना । हम लोग चलते हैं । और बलबहादुर, तुम्हें यहाँ रुकने की अभी ज़रूरत नहीं है। तुम जल्दी ही लौट जाओ । कपिली घाट पर रुके रहना और वहीं से उधर की देख-रेख करते रहना । हाँ, यह ध्यान रखना कि इकीया के आदमी किसी भी प्रकार इधर आने न पायें । यदि आते दिखें और सम्भव हो, तो पहले ही ख़बर करने की व्यवस्था करना ।” गोसाई क्षण-भर के लिए रुक गये । दम लेते हुए पुनः बोले, “मुझे अब भी थोड़ी आशा है । आदमी वह बुरा नहीं है । हाँ, लेकिन है डरपोक । पर वही क्यों, हमारे बीच अभी ऐसे और भी तो डरपोक साबित हुए हैं । वह शइकीया को सारी बातें नहीं भी बता सकता है ।" कुछ क्षण रुक वे फिर बोले, "पर हाँ, निश्चयपूर्वक कुछ कहा नहीं जा सकता । ठीक-ठीक कुछ भी कहना मुश्किल है ।" रूपनारायण चुप ही रहा । उसने गोसाईं को घड़ी की ओर देखने का संकेत faar | और गोसाई ने आहिना कोंवर को चलने के लिए इशारा किया । तभी कॅली आगे आयी । बोली : " आप लोग जाकर सकुशल लौट आइये । हम यहीं हैं । डिमि नगाँव गयी है । पर आप लोगों ने धनपुर को सुभद्रा के बारे में क्यों नहीं बताया ? उसे बड़ा आघात लगा है। उससे भी अधिक बढ़ा आघात लगा है इसलिए कि उससे सारी बात छिपाकर रखी गयी। यदि इस बीच वह कहीं मर जाय तो उसे सुभद्रा के 148 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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