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________________ आया हूँ । गारो पोशाक में तो उसे मैं, पहचान भी न सका था। उसी ने मुझे यहाँ आने को कहा । लयराम के आदमियों की देख-रेख शान्ति सेना कर रही है ।" जैसे ज्वर में पसीना छूटता है, वैसे ही दधि के ललाट पर पसीने की बूंदें उभर आयीं । उसके कथन में एक अबूझ और अव्यक्त वेदना छिपी थी। उसने फिर कहा, "एक ओर बात कहनी है ।" "क्या ?" दधि ने अपनी जेब से एक पत्र निकालकर गोसाईं को दिया। गोसाईं ने पत्र को पढ़कर रूपनारायण को थमा दिया। रूपनारायण ने उसे पढ़ लेने के बाद गोसाईंजी को फिर लौटा दिया। बोला वह : "अब सम्भव नहीं है ।" "लगता है कामपुर के गोसाईंजी के मन में भय बैठ गया है । अन्यथा इस काम को रोकने के लिए आदेश क्यों करते । उन्हें निर्देश ही करना चाहिए था, उपदेश देने की क्या आवश्यकता थी ?" यह कह थोड़ी देर के लिए गोसाईं चुप हो रहे । फिर बोले, “क्या तुम भी डर गये हो मास्टर !" गोसाईं के आख़िरी वाक्य से दधि का क्रोध उभर आया था, किन्तु उसे प्रकट न करते हुए ही बोला : "शइकीया के आदमी आ धमकने ही वाले हैं । कमारकुचि से गोसाइनजी को भी उसने गिरफ्तार कर लिया है। उनकी कमर में रस्सी बाँधकर उन्हें ले गया है । उनके पैर भारी हैं। पता नहीं, रास्ते में क्या घट जाये ! मुझे उन्हीं की चिन्ता सता रही है ।" " जो होगा, सो होगा," गोसाईं ने कहा । " माय तो सुरक्षित है ?" "हाँ, खण्डहर जो बचे हैं । धान, चावल, मवेशी -- सब कुछ जबर्दस्ती उठा गये हैं । लगता है गारोगाँव भी न बचेगा । अत्याचार वहाँ भी ढाये जायेंगे । गिरफ्तारी के पहले ही उन्होंने यह पत्र लिखा था। बाहर बच रहा है केवल हाजारिका । इस उदासी में भी वह ढाढस बाँधे हुए है। पत्र के एक कोने में उसने भी एक बात लिख दी है -- 'करेंगे या मरेंगे ।' क्या आपने लिखावट नहीं पहचानी ? कल रात वह भी रोहा से अपने शिविर में आया था । उसके हाथ-पैर सूज गये हैं । पहले जैसा स्वस्थ भी नहीं रह गया है । मन भी स्थिर नहीं रहता है । आन्दोलन की गति भी धीमी पड़ती जा रही है । सुभाष बोस के आई० एन० ए० के साथ भी अभी तक अपना कोई सम्पर्क नहीं हो पाया है । उनका मन भी दुःखित है। अधिकांश कार्यकर्ता जेलों में डाल दिये गये हैं । उन्होंने कहा है कि रेल उलटना मुश्किल कार्य नहीं है, पर उसके बाद क्या होगा ? ढाल नहीं, तलवार नहीं; फिर क्या, कहने को सरदार भर बनकर बैठा रहना पड़ेगा ।" रूपनारायण को गुस्सा आ गया । बोला : मृत्युंजय | 147
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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