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________________ निर्जन है । खेत, रेलवे लाइन, गाँव, नदी कुछ भी नहीं है । जगह बड़ी काम की है।" "हाँ, जगह तो मिल गयी।" गोसाईं हंसते हुए बोले। "जगह तो मानो सामरिक घाटी ही है। सेनापति भी है । पर सेना कहाँ है ? हथियार कहाँ हैं ?" रूपनारायण ने गोसाईंजी की मुखाकृति को ध्यान से देखा । उस धुंधले अन्धकार में भी उस पर सन्देह की रेखाएँ मानो बिलकुल स्पष्ट हो उठी थीं। रूपनारायण के मन को इससे बड़ी ठेस पहुँची। उसे आशा थी कि गुफाओं को देखने के बाद गोसाईजी के चेहरे पर आत्मविश्वास का भाव जाग उठेगा, लेकिन इसके विपरीत उसे दिखाई पड़ी आशंका की छाया। उसका मन एक बार फिर क्रोध से भर उठा । एक कर्मठ कार्यकर्ता के अन्तर्मन में उठनेवाली आशंकाओं के ऐसे कुहासे ही जब कभी क्रान्ति का मार्ग अवरुद्ध कर देते हैं । रूपनारायण कुछ उदाससा होकर बोला : ___"इसका सीधा अर्थ तो यह हुआ कि आप भी प्रबल क्रान्ति की इस भावना को पूरे मन से नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं।" गोसाईं ख़ामोश रहे । फिर एकाएक असमंजस-भरे स्वर में बोले : "यह सोचना भूल होगी रूप, कि भारत की सारी जनता क्रान्ति के बारे में ठीक उसी तरह से सोचती है जैसाकि तुम या हम सोच रहे हैं। सबके लिए क्रान्ति अलग-अलग अर्थ रखती है। फिर भी यदि तुम नेतृत्व सँभाल सको तो मैं तुम्हारे साथ काम करने को तैयार हूँ। लेकिन गुरिल्लावाहिनी गठित कर लम्बे समय तक यह लड़ाई लड़ना संभव नहीं लगता।" रूपनारायण ने इतना ही कहा : "यदि आप मेरी तरह सोचते तो शायद ऐसी बात करते ही नहीं। प्रत्येक कार्यकर्ता के चेहरे पर आपकी तरह ही आज आशंका की छाया घिरती हुई प्रतीत हो रही है। कुछ तो मात्र जेल जाने के लिए बाट जोह रहे हैं। जेल चले जाने से वे कम-से-कम बचे तो रहेंगे।" उच्छ्वास लेते हुए उसने आगे कहा : "मात्र धनपुर पर ही मेरी आशा टिकी गोसाई ने रूपनारायण के चेहरे की ओर देखा—मानो वहाँ प्रत्यक्ष अग्नि ही दहक रही हो। उस अग्नि के उत्ताप से ही उसकी देह मानो दग्ध हुई जा रही हो। देह ही नहीं, मन भी। गोसाईजी ने उस समय तर्क करना ठीक नहीं समझा। ''अभी पन्द्रह मिनट नहीं हुए क्या ?' गोसाई ने पूछा। "पांच मिनट बाक़ी हैं अभी । चलिये, लौट चलें।" लौटती बार किसी ने किसी की ओर न तो देखा और न बातें ही की। कहने के लिए कोई बात भी तो नहीं। अभी तो वे ही बातें दोनों के अन्तर को कुरेद रही थीं। 144 / मृत्यंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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