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"तुम मुझे अपनी सुभद्रा मान लो । दुखी मत होओ। जो काम सामने पड़ा है, पहले उसे पूरा कर लो। उसके बाद मैं ख द तुम्हारी शादी रचाऊंगी। नहीं तो मुझे शान्ति नहीं मिलेगी; मैं सच कह रही हूँ।"
डिमि चुप हो गयी और धनपुर भी। इस खामोशी में डिमि का स्वर ही उभरा :
"लेकिन तुमने यह तो नहीं बताया कि काम क्या है ? मुझे नहीं बताओगे?" "पर..." धनपुर कुछ कहने के पहले सुगबुगाया।
"मुझे तो यही सन्देह हो रहा है कि तुम लोग किसी खतरनाक काम के लिए जा रहे हो-वरना इतना भय नहीं होता।" डिमि सशंकित थी।
धनपुर ने पूरा सन्तरा छील लिया था । उसके मुंह से बहुत देर तक कुछ नहीं फूटा । उसने डिमि से एक सिगरेट माँगते हुए कहा :
"तुम इतनी ज़िद कर रही हो तो बता दूं कि सचमुच एक ख़तरनाक खेल खेलने जा रहा हूँ। लेकिन तुम्हें यह वादा करना होगा कि किसी को यह सब नहीं बताओगी-डिलि को भी नहीं।"
“सौगन्ध खानी पड़ेगी क्या ?" डिमि के कथन में अभिमान का स्वर था। __ “नहीं, वादा करना ही काफ़ी होगा। मुझे तुम पर भरोसा न हो, ऐसी बात नहीं।" कहते हुए धनपुर ने सिगरेट का धुआँ ऊपर की ओर छोड़ दिया। फिर मुस्कराते हुए बोला, "इतने दिनों एकान्त पा मैंने चाँद से अपने मन की बहुत सारी बातें कही हैं। तुमसे भी कहूँगा। वादा करो। समझ लो कि आज की रात तुम ही चाँद हो।"
"कहो, एक भी बात मेरे मुंह से इधर-उधर नहीं होगी, सच कह रही हूँ।" डिमि ने उत्तर दिया। साथ ही कहा, "पर मैं चाँद नहीं हो सकती !"
"यह सच है कि तुम चाँद नहीं हो, वरना मेरे इतने नज़दीक कैसे होती ! लेकिन चाँद से कहने का कुछ मतलब होता है, यानी अपनी प्रियतमा से कुछ कहना। इधर उस काम को पूरा करने का समय जैसे-जैसे निकट आता जा रहा है, वैसेवैसे सब कुछ साफ़ होता जा रहा है। इतने दिन तो केवल बाधाओं से जूझने में ही बीते हैं।" धनपुर के मुख पर मन्द मुस्कान-भरी आभा छिटक आयी। ___ "अच्छा, तो मैं तुम्हारी प्रियतमा हुई ?" डिमि ने प्यार से झिड़क दिया। लेकिन इसके साथ ही, उसके अन्तर का सारा ज्वार हर तरह की बाधाओं को पार कर एक झरने की तरह बह निकला-लहराता हुआ। उसके मन की उमंग जैसे तितली बनकर उड़ चली। धनपुर ख़ामोश था। सिगरेट पीते हुए वह कहीं दूर नज़रें जमाये था। ____गौशाला में बंधी गाय बछड़े के लिए कातर स्वर में रँभा रही थी । सुनकर डिमि बोली :
मृत्युंजय | 105