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माँ-बेटी दोनों खिलखिला पड़ीं। डिमि से धनपुर दो-एक बरस छोटा ही रहा होगा । कादम ने समझाया :
"इसकी सोचना बेकार है बेटा । इसकी मंगनी हो चुकी ।"
धनपुर ने डिमि की ओर देखा, जैसे विश्वास न हुआ हो । डिमि हँस दी: हलके से, सहज भाव से ।
कादम ने धनपुर की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा :
"भुट्टा खाओ बेटा ! तुम तो लिये ही बैठे हो ।"
धनपुर ने शायद सुना ही नहीं । उलटे पूछा :
" अच्छा कादम काकी, हरत कुंअर के ब्याह की कथा सत्य है क्या ? यह कपिली ही थी क्या नदी वह ?"
"ना बेटा, वह नदी और थी।" कादम की मुखमुद्रा गम्भीर हो आयी । " पर कहा तो जाता है कि उन युगों में पत्नी ऐसे ही मिल पाती थी।" डिमि ज़ोर से हँसने लगी ।
कादम ने उसे बरजा; फिर बड़े सरल भाव से धनपुर से पूछा :
"तुझे भी अपने लिए वैसी ही बहू चाहिए क्या ?"
धनपुर ने कहना तो चाहा 'हाँ डिमि जैसी', मगर लाजवश कह कुछ न पाया । कपिली की दिशा में देखता रह गया ।
काम ने बताया डिमि का एक 'गारो' युवक के साथ ब्याह होने वाला है । "गारो युवक ?" धनपुर चौंका ।
"हाँ, बड़ा भला लड़का है। डगारु नदी के उस पार रहता है । कई खेत हैं उसके ।"
धनपुर और न खा सका भुट्टा । कपिली में फेंक दिया ।
"क्यों, फेंक क्यों दिया ?" कादम ने पूछा ।
"भूख नहीं है ।"
fsfa फिर खिलखिल करती हँस पड़ी ।
काम ने डाँटा | धनपुर को पान देते हुए कहा :
"तुम अब जाओ बेटा, नहीं तो घर पहुँचते रात हो जायेगी। अगले महीने इसका ब्याह हो जायेगा ।"
" अच्छा !" मुँह ऊपर किये बिना उसने पान लिया और अचल हुआ खड़ा
रहा। एक बार डिमि की ओर देखने की लालसा हुई; देख नहीं सका ।
कदम ने डिमि को पास बुलाया। आकर खड़ी हो गयी वह ।
" धनपुर !" कादम के स्वर में सचमुच मार्दव था ।
" क्या है ?" अनमना सा धनपुर बोला । "बेटा, इसे अपनी बहिन समझो ! बहिन ।”
6 / मृत्युंजय