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________________ ने स्वयं स्वीकारा कि उसने 'मसि कागद' नहीं छुआ है, वह अपनी अंतःप्रेरणा से जो कुछ कहता-बोलता गया, उसका एक अंश तो मौखिक परंपरा में आ गया और कुछ को शिष्यों ने लिपिबद्ध करने का प्रयास किया। इसके मूल की पहचान में थोड़ी कठिनाई हुई, शुद्ध पाठ के स्तर पर भी, और अनेक पांडुलिपियों के आधार पर ही संकल्प-संपादन किया जा सका। भाषा में इतने प्रकार के संयोजन हैं-खड़ी बोली, ब्रज, अवधी, भोजपुरी, पंजाबी कि उससे भी पाठ-निर्धारण की समस्या। पर जितना जिस रूप में उपलब्ध है, उससे स्पष्ट है कि कबीर अपने समय-समाज से सीधे जूझने वाले कवियों में प्रमुख हैं। धरमदास, शेख फरीद, मलूकदास, दादूदयाल, प्राणनाथ आदि इस परंपरा में माने जाते हैं, यद्यपि इनके तेवर उतने जुझारू नहीं हैं। सूफी काव्य भक्तिकाव्य में एक नए भाव-बोध का प्रवेश कराता है, जिसे प्रेम-भाव कहा जाता है। सूफी अरब-ईरान से चलकर भारत आए, जिनमें मुईनुद्दीन चिश्ती 1190 ई. में भारत आए। इस क्रम में महत्त्वपूर्ण नाम निज़ामुद्दीन औलिया का है, जो 1238 ई. में जन्मे थे और जिनका प्रभाव व्यापक है। सूफी उदार इस्लामी पंथ के प्रतिनिधि हैं और आरंभ में उन्हें कष्ट भी सहने पड़े, पर क्रमशः उनके उदार पंथ को स्वीकृति मिली और वे हिंदू-मुसलमान दोनों में, अपने ‘सादा जीवन, उच्च विचार' के कारण आदरणीय हुए। लौकिक से अलौकिक की साधना उनका प्रेमपंथ है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए उन्होंने हिंदू कहानियाँ लीं। दर्शन तथा काव्य की मैत्री से सूफी कवियों ने अपने रचना-जगत का निर्माण किया और उनका एक संपूर्ण प्रतीक-संसार है, आध्यात्मिक संकेत करता। लोकभाषा अवधी को अपनाते हुए, उन्होंने लोकप्रियता पाई और जातीय सौमनस्य के प्रतीक बने। कबीर और सूफ़ियों का प्रेमभाव एक ही दिशा की ओर अग्रसर है-जीव-ब्रह्म ऐक्य, पर कबीर का स्वर जुझारू है और सूफ़ियों का शांत-संयत, यद्यपि उनमें भावावेग के क्षण भी हैं। सूफ़ियों को प्रेमाख्यानक काव्य से संबद्ध किया जाता है, जिसकी परंपरा ईरान-भारत दोनों में है। अमीर खुसरो (1253-1325) की कृतियों में इसे देखा जा सकता है, जिन्होंने कई प्रकार की रचनाएँ प्रस्तुत की। सूफी काव्य परंपरा में ईरानी जलालुद्दीन रूमी, सनाई, अत्तार जैसे फारसी मसनवीकार हैं। पर सूफी मत भारतीय चिंतन को भी स्वयं में समोता है और जो सूफी प्रेमाख्यान रचे गए, उनसे यह प्रमाणित हो जाता है। जायसी ने पद्मावत में कुछ का उल्लेख किया है (राजा गढ़ छेका खंड) जो उनके पूर्ववर्ती हैं। मुल्ला दाऊद का चंदायन (1380), कुतुबन का मृगावती (1504), जायसी का पद्मावत (सोलहवीं शती), मंझन का मधुमालती (1545), उसमान का चित्रावली (1613), शेखनबी का ज्ञानदीप उल्लेखनीय हैं। डॉ. श्याममनोहर पांडेय ने सूफी प्रेमनिरूपण का विस्तृत विवेचन करते हुए उसकी आध्यात्मिकता का वैशिष्ट्य बताया है (मध्ययुगीन प्रेमाख्यान, पृ. 131)। इन सूफी काव्यों में भारतीय कहानियों में प्रेमदर्शन को अंतर्भुक्त किया भक्तिकाव्य का स्वरूप / 73
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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