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________________ करना ही होगा कि कई जातियों के पारस्परिक संवाद और विचार-विनिमय से एक संयोजित चिंतन भूमि तैयार हुई जिसे विद्वान् 'हिंदुस्तानी संस्कृति' कहते हैं और कुछ 'राष्ट्रीय संस्कृति' भी । इस मेल-जोल का प्रभाव भारतीय चिंतन और समग्र रचनाशीलता पर देखा जा सकता है। एक प्रकार से यह नए समाजदर्शन का आरंभ है, जहाँ दूरियाँ कम होती हैं, अलगाव टूटता है और संवाद की शुरुआत होती है। दोनों जातियों के संवाद से मध्यकालीन चिंतन को एक नई दिशा प्राप्त होती है, इसमें संदेह नहीं । सूफी इसका एक पक्ष प्रस्तुत करते हैं। 1 भारतीय मध्यकालीन समाज में सूफियों की भूमिका उदार चिंतन, सांस्कृतिक सौमनस्य, जातीय सहिष्णुता और साहित्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। सूफी अथवा तसव्वुफ इस्लाम का उदार पंथ है, जो सरल जीवन, आध्यात्मिक चिंतन का आग्रह करता है। आरंभ में इसे कट्टरपन के प्रहार झेलने पड़े, पर क्रमशः सामान्यजन में इसे स्वीकृति मिली और शासक भी इस ओर आकृष्ट हुए। सूफी चिंतन का उदय अरब में हुआ। 632 ई. में पैग़म्बर मुहम्मद के निधन के अनंतर खलीफा शासक हुए : अबू वक्र, प्रथम खलीफा थे, फिर उमर, उस्मान और अली । इस्लाम धर्म जब अरब, तुर्की होता हुआ ईरान अथवा फारस आया तो उसमें पर्याप्त परिवर्तन हो चुके थे। सूफियों का पंथ कुरान शरीफ़ और हदीस की उदार व्याख्या पर आधारित है । निकल्सन, ब्राउन जैसे इतिहासकार इसे उसके विकास में महत्त्वपूर्ण मानते हैं (ई. जी. ब्राउन : लिटरेरी हिस्ट्री ऑफ पर्शिया, पृ. 427 ) । ईरान में सूफी मत अपनी पूर्णता पर पहुँचा जिसका परिचय फारसी सूफी कवि फरीदुद्दीन अत्तार ( 1120-1222) की पुस्तक 'तजकिरातुल औलिया' से मिलता है जिसमें सूफी संतों की चर्चा है और सूफी साधकों में राबिया अल-अदाबिया जैसी महिला भी है । विद्वानों ने सूफी संतों की लंबी सूची दी है : हुसैन बिन मंसूर अल-हल्लाज जिसे सूली पर चढ़ा दिया गया था क्योंकि उसने कहा था : 'अनल हक' : मैं खुदा हूँ ( अहं ब्रहास्मि) । अबू हमीद मुहम्मद अली ग़ज़ाली ने सूफ़ी मत को दार्शनिक, वैचारिक आधार देने का प्रयत्न किया। सूफी संतों ने सरल जीवन पर बल दिया और समाज में स्वीकृत हुए । उन्हें वली कहा गया. अर्थात् दिव्य शक्ति से संपन्न, यही औलिया हुआ जो वली का बहुवचन रूप है। ईरान में अबुल मज्द - मजदूद-बिन आदम सनाई, फरीदुद्दीन अत्तार, जलालुद्दीन रूमी जैसी सूफी प्रतिभाएँ हैं। भारत में चार प्रमुख सूफी संप्रदाय सक्रिय रहे : चिश्तिया, सुहरवर्दिया, कादिरिया और नक्शबंदिया । ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भारत आने वाले आरंभिक सूफी संतों में थे जिनमें निज़ामुद्दीन औलिया ( 1238 - 1325) को व्यापक स्वीकृति मिली। सूफी संतों का वैशिष्ट्य कि वे जनसमाज में लोकप्रिय हुए और हिंदू-मुसलमान दोनों ने उन्हें आदर दिया । परशुराम चतुर्वेदी ने सूफियों को उदारपंथी कहते हुए लिखा है कि हृदय की शुद्धता, बाह्याचरण की पवित्रता, ईश्वर (निर्गुण) के प्रति अपार श्रद्धा, पारस्परिक सहानुभूति, विश्वभ्रातृत्व व विश्व-प्रेम की ओर ये T मध्यकालीन समय-समाज और संस्कृति / 39
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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