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________________ पर जनभाषाओं की सक्रियता वर्ग-भेद मिटाने में सहायक होती है और इससे सर्जनशीलता को नई दिशाएँ मिलती हैं। आभिजात्य टूटता है और सामान्यजन के संवेदन रचना में अभिव्यक्ति पाते हैं । संगीत शास्त्रीय पद्धतियों के साथ लोकधुनों को समायोजित करता है और सर्जनशीलता का समग्र संसार लोकउपादानों से समृद्ध होता है। सामंतवाद के संरक्षण में कलाएँ विकसित हुईं और यदि केंद्रीय सत्ता का आभिजात्य -पोषण है, तो दूसरी ओर प्रांतों में क्षेत्रीय स्वरूप को विकास मिला । देशी भाषाओं की सक्रियता सामंती संरक्षण के संदर्भ में देखी जानी चाहिए। अवधी, ब्रज में विपुल हिंदी रचनाएँ प्रस्तुत हुईं। संपूर्ण महादेश में भारतीय भाषाओं की सक्रियता मध्यकाल का उल्लेखनीय तथ्य है और जिसे दक्खिनी हिंदी कहा जाता है, उसकी रचनाशीलता भी विचारणीय है ( श्रीराम शर्मा : दक्खिनी हिंदी का साहित्य, पृ. 40 ) । सल्तनत काल के आरंभिक दौर में जन्मे, सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया के शिष्य अमीर खुसरो को दृष्टांत रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है जिन्होंने अपनी भाषा को 'हिंदवी' कहा। वे कई सुल्तानों से संबद्ध रहे और उन्होंने राजनीतिक उत्थान-पतन देखे । अरबी, फारसी, संस्कृत भाषाओं का उन्हें ज्ञान था जिसमें उनकी रचनाएँ हैं, पर हिंदी भाषा का आरंभिक रूप उनकी मुकरियों, पहेलियों में देखा जा सकता है : गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस/चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस । मध्यकालीन भारतीय समाज में सामासिक संस्कृति विकसित करने के जो प्रयत्न हुए, उन्हें सामंतों के भवन निर्माण, कला - नियोजन तक सीमित नहीं किया जा सकता, यद्यपि इससे दो प्रमुख संस्कृतियों के संयोजन के संकेत मिलते हैं । संगतराश संगमरमर को कलाकृति का रूप दे रहे थे, जिसकी समृद्ध परंपरा पड़ोसी फ़ारस में थी । हुमायूँ फारसी कला-संस्कृति से प्रभावित हुआ और वहाँ की उदार विचारधारा की छाया उसके व्यक्तित्व में देखी जा सकती है। कई बार 'सूफियाना अंदाज़' का परिचय उनके वक्तव्यों से मिलता है (गुलबदन बेगम : हुमायूँनामा, पृ. 120 ) । स्थापत्य, वास्तुकला में विभिन्न संस्कृतियों का संयोजन प्रमाणित करता है कि प्रमुख जातियों में संवाद की प्रक्रिया गति मिल रही थी । संगीत, चित्रकला को कट्टरपंथी स्वीकार करने के लिए तैयार न थे और इन्हें इस्लाम के विरोध में मानते थे । हुमायूँ फारसी चित्रकला का प्रशंसक था, जिसे अकबर-जहाँगीर के समय में विकास मिला । अबुल फ़ज़ल ने आइने अकबरी में चित्रकला को 'तस्वीर की कला' कहकर संबोधित करते हुए कई चित्रकारों - गायकों का उल्लेख किया है। जहाँगीर के समय में मुग़ल चित्रकला अपनी पूर्णता पर पहुँची और वह स्वयं भी इसका पारखी था । संगीत की नई राग-रागिनियाँ विकसित की गईं और अकबर के समय में तानसेन जैसे सिद्ध गायक हुए। इस प्रकार भारतीय मध्यकाल के कला-जगत् में कई संस्कृतियों का मिलन देखा जा सकता है । मुग़ल चित्रकला का स्वतंत्र व्यक्तित्व निर्मित हुआ, जिसे मुग़ल अथवा शाही कलम कहा गया (एच. के. शेरवानी : कल्चरल ट्रेंड्स इन मेडिवल इंडिया, पृ. 46 ) । मध्यकालीन समय-समाज और संस्कृति / 37
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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