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________________ सामाजिकता में वृद्धि होती है। कुछ ही दृश्यों का संकेत किया जा सकता है, जो विभिन्न स्थितियों से संबद्ध हैं। अयोध्या के नगरवासी राम के राज्याभिषेक से प्रसन्न हैं, पर वनवास का समाचार सुनकर दृश्य, हर्ष से विषाद में बदल जाता है : नगर ब्यापि गई बात सुतीछी, छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी। सारा समाज व्याकुल है, वनखंडी में जैसे आग लगी हो : सुनि भए बिकल सकल नर-नारी, बेलि बिटप जिमि देखि दवारी। तुलसी जनसमाज की विभिन्न प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करते हैं, लोग कैकेयी के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, जैसे : निज कर नयनि काढ़ि, चह दीखा, डारि सुधा बिषु चाहत चीखा। वे कहते हैं कि राजा दशरथ ने भी ठीक नहीं किया कि कुटिल कैकेयी को वर दिया। भरत के विषय में बहुमत का विचार है कि चन्द्रमा चाहे अग्नि-वर्षा करे, किंतु भरत निर्मल हैं : सपनेहुँ कबहुँ न करहिं किछु भरतु राम प्रतिकूल। अंत में विधाता पर सब कुछ छोड़ दिया जाता है : खरभरु नगर सोचु सब काहू, दुसह दाहु उर मिटा उछाहू। यह प्रंसग विस्तार से है जिसमें कैकेयी, सीता, राम सबके विषय में प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की गई हैं। यह अयोध्या का समाज है, जो तमसा तीर तक उनके साथ है : बिषय बियोग न जाइ बखाना, अवधि आस सब राखहिं प्राना। सामान्यजन की उपस्थिति तुलसी की जिस लोकचेतना का प्रकाशन करती है, उसका सर्वोत्तम उदाहरण वनवास के समय दिखाई देता है। विद्वानों ने रामवनगमन के समय ग्राम-जन, आदिवासी समाज की प्रतिक्रियाओं का विशेष उल्लेख किया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसी की गहरी भावुकता के व्यापक संदर्भ में इसका विवेचन करते हुए लिखा है : 'एक सुंदर राजकुमार के छोटे भाई और स्त्री को लेकर-घर से निकलने और वन-वन फिरने से अधिक मर्मस्पर्शी दृश्य क्या हो सकता है ? इस दृश्य का गोस्वामीजी ने मानस, कवितावली और गीतावली तीनों में अत्यंत सहृदयता के साथ वर्णन किया है। गीतावली में तो इस प्रसंग के सबसे अधिक पद हैं। ऐसा दृश्य स्त्रियों के हृदय को सबसे अधिक स्पर्श करने वाला, उनकी प्रीति, दया और आत्मत्याग को उभारने वाला होता है, यह बात समझकर मार्ग में उन्होंने ग्राम-वधुओं. का सन्निवेश किया है' (तलसीदास, प्र. 79)। वन-मार्ग में सामान्यजन की प्रतिक्रियाएँ सहज-अकृत्रिम हैं और यहाँ तक कहा गया कि यदि राम-सीता लक्ष्मण पैदल चल रहे हैं, तो ज्योतिषशास्त्र झूठा है : मारग चलहु पयादेहि पाएँ, ज्योतिष झूठ हमारे भाएँ। तुलसी ने इस प्रसंग को विस्तार देकर कई अभीप्साओं की पूर्ति की है। वनवास राम के व्यक्तित्व को पूर्ण विकास देता है, वह उनकी संघर्ष-गाथा है, जिससे उन्हें दीप्ति मिलती है। वनमार्ग में सामान्यजन के लिए यह सौभाग्य का क्षण है : जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं, तिन्ह समान अमरावति नाहीं। सब राम के शील-सौजन्य को सराहते हैं और सीता-लक्ष्मण के त्याग की प्रशंसा करते हैं। प्रकृति भी इसमें सम्मिलित है-नदी, ताल, वृक्ष सब सौभाग्यशाली हैं : जे सर सरित राम अवगाहहिं, तुलसीदास : सुरसरि सम सब कहँ हित होई / 193
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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