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________________ ॐारखानोव जैसा मार्क्सवादी भी मानता है : 'मार्क्स का कोई भी अनुयायी बिना सी विवाद के इस सबके साथ सहमत होगा : हाँ, किसी भी दार्शनिक प्रणाली साहीतरह कला की किसी कृति की व्याख्या उसके युग के विचारों तथा आचार-व्यवहार ही अवस्था के आधार पर ही की जा सकती है' (इतिहास के अद्वैतवादी दृष्टिकोण का विकास. प. 219)। आगे चलकर तेन की दस्तावेज़ वाली अवधारणा को प्रतिबद्धता और सौंदर्यवाद दोनों ने संदेह की दृष्टि से देखा। साहित्य के समाजशास्त्र की अवधारणा का विकास इस प्रकार हुआ कि रचना इस अर्थ में एक मानवीय उत्पादन है कि उसे अपनी सामग्री समाज से प्राप्त होती है। इस प्रकार साहित्य की जो सामाजिकता निर्मित होती है, वह समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय बनती है। इस क्षेत्र में कई धाराएँ कार्य करती रही हैं और उनके विचार एक-दूसरे से टकराते भी हैं, जैसे मार्क्सवादी और गैर-मार्क्सवादी। आज साहित्य के समाजशास्त्र ने एक महत्त्वपूर्ण स्वतंत्र स्थिति प्राप्त की है, जिसमें कुछ विचारकों की प्रमुख भूमिका है, जिनकी चर्चा उपादेय होगी। साहित्य का समाजशास्त्र बनने में मार्क्सवाद के जो प्रभाव रहे हैं, उन्हें स्वीकारना होगा। कार्ल मार्क्स (1818-83), फ्रेडरिक एंगेल्स (1820-95) ने 1848 में 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' प्रकाशित किया। इसमें विश्व बाज़ार की तलाश में फैलते आधुनिक पूँजीवाद के विषय में कहा गया : 'उत्पादन प्रणाली में निरंतर क्रांतिकारी परिवर्तन, सभी सामाजिक अवस्थाओं में लगातार उथल-पुथल, शाश्वत अनिश्चयता और हलचल-ये चीजें पूँजीवाद युग को पहले के सभी युगों से अलग करती हैं। सभी स्थिर और जड़ीभूत संबंध, जिनके साथ प्राचीन और पूज्य पूर्वाग्रहों तथा मतों की एक पूरी श्रृंखला होती है, मिटा दिए जाते हैं, और सभी नए बनने वाले संबंध जड़ीभूत होने के पहले ही पुराने पड़ जाते हैं। जो कुछ भी ठोस है वह हवा में उड़ जाता है, जो कुछ पावन है, वह भ्रष्ट हो जाता है, और आख़िरकार मनुष्य संजीदा नज़र से जीवन के वास्तविक हालातों को, मानव-मानव के आपसी संबंधों को देखने के लिए मजबूर हो जाता है' (संकलित रचनाएँ, भाग एक, पृ. 48)। इस प्रकार विकसित पूँजीवादी समाज में संबंधों में जो तीव्र परिवर्तन होते हैं, उनका संकेत यहाँ मिलता है। समाज का भौतिक आधार स्वीकार करते हुए, मार्क्सवाद उसे वर्गों के इतिहास रूप में रखकर देखता है और साहित्य में भी इसकी प्रतिच्छाया देखी जा सकती है। मार्क्स-एंगेल्स और लेनिन इस अर्थ में साहित्य पर स्वतंत्र रूप से विचार नहीं करते, जिसके लिए साहित्यशास्त्रियों और आचार्यों के नाम लिए जाते हैं। पर सजग सामाजिक विचारक के रूप में साहित्य और कला में उनकी रुचि है और उन्होंने साहित्य-चिंतन को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। मार्क्स-एंगेल्स के विचार 'ऑन लिटरेचर एंड आर्ट' पुस्तक में संकलित हैं। वी. क्रिलाव ने संपादन करते हुए लंबे प्राक्कथन में लिखा है कि 'मार्क्स-एंगेल्स ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया कविता और समाजदर्शन / 17
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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