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________________ न रोव बहुत तें रोवा, अब ईसर भा दारिद खोवा। स्पष्ट है कि लोक उपादानों का सक्षम उपयोग जायसी की रागात्मक लोकचेतना से जुड़ा है जो उनके काव्य को मार्मिकता देता है। विवरणों के अंश छोड़ भी दें तो जहाँ कवि को अवसर मिला है. उसने लोकउपादानों का प्रयोग काव्य-समृद्धि के लिए किया है। एक धरातल है भाव-संसार का, दूसरा है अभिव्यक्ति का, जहाँ लोकजीवन से पाया गया मुहावरा बडी मात्रा में प्रवेश पाता है : कुहुकि-कुहुकि जस कोयल रोई। इसके लिए नागमती का विरह-वर्णन अपनी मार्मिकता में सर्वाधिक उल्लेखनीय है। __ परिवार भारतीय समाज का आधार रहा है और पद्मावत की कथा में इसकी भी भूमिका है। मध्यकाल में इसके रूप बदले, बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन हुआ, पर जायसी नारी का पक्ष लेते हैं, कई प्रकार से और इस पर विचार करने से कवि के समाजदर्शन के कुछ बिंदु उद्घाटित होते हैं। नारियाँ कई रूपों में आती हैं-पद्मावती की सखियों से लेकर राजा की दासियों तक । पद्मावती-नागमती दोनों की उपस्थिति के बावजूद, जायसी दाम्पत्य-जीवन पर बल देते हैं। पर इसके पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए, वे नारी की विवशता का संकेत भी करते हैं और कवि की सहानुभूति नारी के साथ है। ‘मानसरोदक खंड' में विवाह के पूर्व पद्मावती मानसरोवर में स्नान करने जाती है और जल-क्रीड़ा करते हुए सखियाँ कहती हैं : पिता के घर चार दिन ही तो रहना है। जब तक पिता का राज है, जितना चाहो, मन-भर खेल लो। ससुराल चले जाने पर यह स्वतंत्रता कहाँ : सास-ननद-ससुर सबको सहना-झेलना होगा। मार्मिकता से इस प्रसंग को व्यक्त करते हुए, जायसी भारतीय समाज में नारी की परवश स्थिति का बोध कराते हैं-विवाह के पूर्व का चिंतारहित आज़ाद जीवन और उसके बाद की परवशता : झूलि लेह नैहर जब ताईं, फिरि नहिं झूलन देइहि साईं। स्थिति यह होगी कि जैसे बंदी पक्षी होते हैं : कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल आप आप कहं होइहि, परब पंखि जस डेल। __ जायसी की सहानुभूति नारी के साथ है। क्यों ? इसलिए भी कि सामंती समाजों में सर्वाधिक पीड़ित-शोषित नारी ही होती है। शास्त्र को उद्धृत करें तो वह चिरंतन आश्रित है : विवाह के पूर्व माता-पिता, दाम्पत्य जीवन में पति और बाद के एकाकीपन में पुत्र। मेरा विचार है कि संवेदनशील जायसी की नारी-दृष्टि उनके समाजदर्शन का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, यहाँ वे अपनी पूरी सहानुभूति नारी-वर्ग को देते हैं। भारत में बेटी की विदाई बड़ा करुण प्रसंग है और महाकवि कालिदास अभिज्ञान-शाकुन्तलम् में शकुन्तला की विदाई के समय ऋषि कण्व से कहलाते हैं : जब मुझ जैसे वनवासी को इतनी व्यथा हो रही है, तब उन गृहस्थों की क्या स्थिति होती होगी, जो पहली बार अपनी बेटी को विदा करते होंगे (चतर्थ अंक, 6)। रत्नसेन-विदाई खंड में जायसी न इस विस्तार से कहा है, प्रसंग को करुण, मार्मिक बनाते हुए। विदाई-क्षण का. मलिक मुहम्मद जायसी : पेम छाँड़ि नहिं लोन किछु / 117
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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