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________________ योगसार टीका। वन्ध है। दसवें सूक्ष्मलोभ गुणस्थानतक बन्ध है। रागट्टेप, मोह, भाव, बन्धहीके कारण है । ज्ञानीको यह भलेप्रकार समझना चाहिये। मुनित्रत या प्रायफके इतका राग या आपका राग या भक्तिका बाग या पठनपाठनका राग या मन्त्रोंके जपका राग यह सब राग बन्धहीका कारण है। साधुका कठिन कटिन चारित्रको राग सहित पालना हुआ भी बन्धको ही करता है । मोक्षका का भाव एक वीतरागभाव है. या शुद्धोपयोग है या निश्चय बत्नत्रय है । शुद्धात्माका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है, शुखात्माका जान सम्यगजान है, शुद्धात्माका ध्यान सम्यकचारित्र है । यह गलत्रय धर्म एकदेश भी हो तौभी बन्धका कारण नहीं है। ज्ञानीको यह विश्वास रखना चाहिये कि मेरा उपयोग जब सर्व चिंताओंको त्यागकर अपने ही आत्माके स्वभायमें एकाग्र होगा ऐसा तन्मय होगा कि जहां ध्याता, भ्यान, टोयका भेद न रहे, गुण गुणीके भेदका विचार न रहे, बिलकुल स्व रूपमें उपयोग ऐसा घुल जावे कि जैसे लवणको डली पानीमें घुल जाती है। आत्मसमाधि प्राप्त होजाये या स्वानुभव होजावे । इसहाको ध्यानकी अग्नि कहते हैं । यह एकाग्र शुद्धभाव मोनका कारण है, मंबर व निर्जराका कारण है। इस भावकी प्राप्तिकी कला अविरत सम्प्राष्टि चौधे गुणस्थान प्राप्त होजाती है । ___ चौथे, पांच देशविरन तथा छठे प्रमत्तविरत गुणस्थानमें प्रवृत्ति मार्ग भी है, निवृत्ति भाग भी है। जब ये गृहस्थ तथा साधु ध्यानस्थ होते हैं तब निवृत्ति मार्गमें चढ़ जाते हैं। जब गृहस्थ धर्म, . अर्थ, काम पुरुषार्थ साधते हैं या साधुका व्यवहार चारित्र, आहार विहार, स्वाध्याय, धर्मोपदेश आदि पालते हैं तय प्रवृत्तिमाग है । निवृत्ति मार्गमें उपयोग एक शुद्धारमाके सन्मुख ही रहता है । प्रवृत्ति
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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