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योगसार टीका। (जो परभार चएइ) तथा जो अपने आत्माके स्वभावको छोड़कर अन्य सब भावोंका त्याग कर देता है (सो पंडिउ) वही पंडित गेदविनापी अन्नात्मा है. वह ( अण्णा मुणाह) अपने आपका अनुभव करता है ( सो संसार मुएइ) बही संसारसे छूट जाता है ।
भावार्थ- सम्यग्दृष्टीको अन्तरात्मा कहते हैं। मिथ्यादृष्टी अज्ञानी पहले गुणस्थानस चढ़कर जब चौयमें या एकदम पांचवमें या सात गुणस्थानमें आता है तब सम्यग्री अन्तरात्मा होजाता हैं। मिथ्यात्वकी भूमिको लापकर सम्यक्तकी भूमिपर आनेका उपाय यह है कि सनी पंचेन्द्रिय जीव पांच लब्धियोंकी प्राप्ति करे ।
१-क्षयोपशम-लब्धि प्रेसी योग्यता पावे जो बुद्धि तत्वोंक समझनेयोग्य हो व जो अपने पापकर्मके उदयको समय २ अनन्तगुणा कम करला जावे अर्थात् जो दुःखोंकी सन्तानको घटा रहा हो, साताको पा रहा हो, आकुलित चित्तवारी जीव तत्य की तरफ उपयोग नहीं लगा सक्ता है।
२-विशुद्धिलब्धि-सुशिक्षा व सत् संगतिके प्रतापसे भावों में ऐसी कषायकी मदता हो कि जिससे शुभ व नीतिभय कार्योकी तरफ चलनेका प्रेम व उत्साह हो व अशुभ व अप्रीतिसे परिणाम सकता हो | इस योग्यताकी प्राप्तिको विशुद्धि लब्धि कहते हैं ।
३-देशनालञ्चि-अपने हितकी खोजमें प्रेमी होकर श्रीगुरुसे व शास्त्रोंसे धर्मोपदेश ग्रहण करे, मनन करे, धारणामें रखे । जीर, अजीब, आस्रव, बन्ध, संघर, निर्जरा, मोक्ष इन सान तत्वोंका स्वरूप व्यवहारनपसे और निश्चयनयम ठीक २ जाने । व्यवहारनन्त्रम जाने कि अजीव, आम्रव, बन्ध तो त्यागनेयोग्य हैं व जीत्र, संघर, निर्जरा, मोक्ष ये चार तत्व ग्रहण करनेयोन्य हैं । निश्चयनयाने जाने कि इन सात तत्वों में दो ही द्रव्य है-जीव व कर्मपुगल | कर्मपुल