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________________ योगसार टीका। [ ३६३ करता हूं कि यही मेरी अनुमति परम शुद्ध होजावे, वीतरागी होजावे, परम शांतरससे व्याप्त होजावे. समभावमें नन्मयता होजाचे, संसारमागसे मोक्षमार्गी होजावे । मंगलमय अरहतको, मंगल. सिद्ध महान् । आचारज पाटक यती, नमई नमहं सुख दान ।। परम भाव परकाशका, कारण आत्मविचार । जिस निमित्तसे होय सो, बंदनीक हरबार ।। . [रन्धई, ता. १३-६-१९३९ ] टीकाकारको प्रशस्ति। युक्त प्रांतमें शुभ नगर, नाम लखनऊ जान । अग्रवाल वंशज बस, मंगलसेन महान ।। १ ॥ जिनवाणी ज्ञाता सुधी, समयसार रस पान । करत करावत अन्यको, करत भव्य कन्या ॥ २ ॥ तिनसुत मक्खनलालजी, गृही कार्य लवलीन । तिन सुत वर हैं युद्ध अब, संतलाल दुरस हीन ।। ३ ॥ तृतिय पुत्र हूं नाम है, 'सीतल'. धर्म प्रसाद । विक्रम उनिस पैतिसे, जन्म भयो दुख बाद ।। ४ ।। बत्तिस वय अनुमान), गृह त्यागा वृष काज। श्राक्क चयो पालते, भ्रमण करत पर काज ॥ ५॥
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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