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________________ योगसार टीका। भावसे ग्रहण नहीं करना । चोरीके सर्व प्रकारके दोषोंसे बचना सो अचौर्य महावत है। स्त्री, देवी, पशुनी, चित्राम, इन चार प्रकारकी स्त्रियोंके संबंधों मन वचन काय, कृत कारित अनुमोदनासे कुशीलका त्यागना, सरल निर्विकार शील स्वभावसे रहना, काम विकारके आक्रमणसे बचना सो ब्रह्मचर्य महावत है । चेतन अचेतन सर्व प्रकार के परिप्रहका त्याग करके आर्किचन्य भावसे रहकर सर्व प्रकार की मु का त्याग करना परिग्रह त्याग सहावत है। इन पाच महानतोंके रक्षाक्ष शेष तेईस गुणोंको साधु पालेते हैं। पांच ममिति: चार हाथ भूमि आगे देखकर दिनमें प्राशुक या रौदी हुई भूमि पर चलना ईर्या समिति है । मिष्ट्र हितकारी सभ्य वचन बोलना, कर्कश मर्मछेदक वचन नहीं कहना भाषा समिति है । शुद्ध भोजन भिक्षावृत्तिले श्रावक दातार द्वारा भक्तिपूर्वक दिये जाने पर संतोषले ग्रहण करना एषणा समिलि है । शरीर, पीछी, कमंडल, शास्त्रादि देखकर रखना, उटाना आदाननिक्षेपण समिति है। ___ मल मूत्रादि जैतु रहित भूमिपर डालना उत्सर्ग समिति है। पांच इन्द्रिय निरोधः स्पशेन, रसना, घ्राण, चक्षु य कान इन पांच इंद्रियोंके विषयोंकी इच्छाको रोकना, इन्द्रिय भोगोंसे विरक्त रहना, समभावसे इंद्रियों के द्वारा काम लेना । निर्विकार भावसे इंद्रियों से ज्ञान प्राम करना इंद्रिय वमन है। छः निस आवश्यकः- ... . प्रतिदिन समय पर तीन काल मामायिक करना, मन
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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