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________________ योगसार टीका | | ३३५ हैं। हिंसक, दयावान, असत्यवादी, सत्यवादी, चोर व ईमानदार, कुशील व ब्रह्मचारी, परिग्रहवान व परिग्रह रहित, मोहकी तीव्रता से या मन्दतासे दीखते हैं। ज्ञानावरणी कर्मके क्षयोपशम कम व अधिक होने से कोई मन्द ज्ञानी, कोई तीव्र ज्ञानी, कोई शास्त्रोंके विशेष ज्ञाता, कोई अल्पज्ञाना, कोई शीघ्र स्मृतिवान, कोई अल स्मृतिवान दीखते हैं । दर्शनावरणीय कर्मके क्षयोपशम से कोई चक्षु रहित, कोई चक्षुबाम दीखते हैं । अन्तराय कर्मके क्षयोपशमसे कोई विशेष आमचली, कोई कम आत्मबली दीखते हैं। नाना जीवेंकिं नानाप्रकार के परिणाम थातीय कर्मोके कारण दीखते हैं | आयुकर्म के उदयसे कोई दीर्घायु, कोई अल्पायु दीखते हैं। कोई जन्मते हैं, कोई मरते हैं। नामकर्म के कारण, कोई सुन्दर, कोई असुन्दर, कोई सुडौल शरीरो, कोई फुडौल शरीरी, कोई बलवान, कोई निवेल, कोई रोगी, कोई निरोगी, कोई स्त्री, कोई पुरुष, कोई अन्धे, कोई बहिरे, कोई काने, कोई लंगड़े, कोई सुन्दर चाल चलनेवाले, कोई बुरी चाल चलनेवाले दीखते हैं। गोत्र कर्मके उदयसे कोई उम्रकुली, कोई नीचकुली दीखते हैं । वेदनीय कर्मके उदयसे कोई धनवान, कोई निर्धन, कोई बहुकुटुम्बीजन, कोई कुटुम्ब रहित, कोई इन्द्रिय भोग सम्पन्न, कोई भोग रहित, कोई विशाल मकानका वासी, कोई वृक्षतल निवासी, कोई सब साभूषण, कोई आभूषण रहित, कोई सुखी, कोई दुःखी दीखते हैं। आठ कर्मोंके उदयसे यह जगतका नाटक होरहा है। प्राणी इन्द्रियके विषयोंके लोभी हैं व आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, संज्ञाओंमें मूढ़ हैं। इसके कारण इष्ट पदार्थोंमें राग व अनिष्ट पदार्थों में द्वैध करते हैं । व्यवहारदृष्टि रागद्वेष होनेका निमित्त सामने रखती है। निश्चय
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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