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________________ योगसार टीका । [ ३३३ चन्द्राकार जल मंडल मेरे ऊपर होगया पपपपप लिखा है यह जलकी धाराएं मेरे आत्माको घोरही हैं, सब रज दूर हो रही हैं ऐसा विचारे | ( ५ ) तत्व रूपवती - आत्मा बिलकुल साफ होगया, सिद्ध के समान हो गया । परम शुद्ध शरीर के प्रमाण आत्माको देखे । यही पिंडस्थ ध्यान है | ( २ ) पदस्थ ध्यान - पदोंके द्वारा ध्यान करना । जैसे ॐ को या है को मस्तकपर, भौहोके बीच में, नाककी नोकपर, मुँहमें, गले में, हृदयमें या नाभिमें बिराजमान करके देखे व पांच परमेष्ठी के गुण कभी कभी विचार करे । (२) एक आठ पत्तोंका कमल हृदयमें विचारे। एक पलेपर णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोएव्साहूणं, सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यकूचारित्राय नमः | इन आठ पदकों विराजित करके एक एक पदका ध्यान क्रमसे करें । (३) रूपस्थ ध्यान - अपनेको समवसरणमें श्री अरहंत भगवान के सामने खड़ा देखें | अरहंत भगवान पद्मासन परम शांत विराजित हैं उनके स्वरूपका दर्शन करें। अथवा किसी ध्यानमय तीर्थंकरकी प्रतिमाको मनमें लाकर उसका ध्यान करे । (४) रूपातीत — सिद्ध भगवानके पुरुषाकार ज्ञानानन्दमय स्वरूपका ध्यान करे | जब मन एकाग्र होता है वीतरागता प्रगट होती है तब बहुत कर्म झड़ते हैं, आत्मा आत्मध्यानके उपाय से ही परम पवित्र परमात्मा होजाता है । तत्वानुशासनमें कहा है
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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